मन फूल सा हल्का हुआ।
मन फूल सा हल्का हुआ क्या देखकर? तुम ही बताओ? मित्र हो! अग्रज मेरे! अनुज हो! कुछ भी नहीं, तुम! हाय मेरे! तुम ही बताओ......कौन हो? पर साथ हो, इसलिए "साथी मेरे हो" प्रिय! साथी मेरे हो! सच कहूं, यह सोचकर "मन मेरा किसी फूल सा हल्का हुआ"। कभी, सोचता था! मैं अकेला हो गया हूं! इस धरा पर! पर, साथ पाकर बदलियों की बिजलियों का, घन चीरता, हर ओर मेरे, कुछ गजब... उजाला फैला। एक राही जा रहा था, घन-अंधेरे, रात में, पा गया, इस रौशनी को खुश हुआ। कुछ दूर तक आगे बढ़ा, चमकती इन बिजलियों की चमचमाती द्यूतियों में सुरक्षित, वह घर गया। देखता हूं, घर मैं उसका! हंस रहीं हैं, खिलखिलाती, बच्चियां, बस! ...., पाकर उसे! छूकर उसे! कुछ भी नहीं था पास उसके दे सके उन बच्चियों को। यह सत्य था, ज्यादा अंधेरा, घर में उसके जाने न कब से, था भरा! "देख कर वह प्यार निश्छल, नन्हियों का...