विश्वास, सत्य से ऊपर।
वह बैठ कर उस प्लेन में
पकड़ी रही, भर रास्ते ,
अपने सुहृद का हाथ;
मनाती देवता को
पार कर दो मार्ग!
अबकी बार!
जब जब
बादलों
ने राह
काटी,
हिल
उठा
था
प्लेन
थोड़ा
उचकता
सा चल रहा था,
चेतावनी के साथ
अपने स्थान पर ही बैठे रहें !
बांध लें पेटी, लगी जो
सीट के है साथ।
अब होने को
है कुछ,
इस
वार्निग
के बाद
सोचती, मनौती
मानती, चढ़ाती जाने न
कितने प्रसादों पर प्रसाद।
वह पकड़ी रही,
उड़ रहे,
उस
प्लेन को
कुछ इस तरह,
छोड़ देगी तो गजब
हो जाएगा।
निचला
धरातल
प्लेन का,
और धरा नीचे की
यह, दोनो एक में तुरत
मिल जाएगा।
कितनी
मनौतियां
कितनी मन्नतें,
कड़ाहियां चढ़ाने को
देवी देवताओं के
थान पक्के
हो
गए।
फिर तो
सब कुछ अच्छा
होना ही था, प्लेन से
सभी लोग, मय सामां सकुशल
नीचे उतर गए।
उसे विश्वास
पक्का था
उसके नियम,
धरम, तीरथ, बरत से
ही उतने ऊपर, जहां कोई
सहाय नही हो सकता
था, बस उसके
किए ही, सब
लोग
और वह
प्लेन हंसी खुशी
नीचे उतर
गया।
जय प्रकाश मिश्र
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