एक! विश्वास है; और मैं जानता हूँ…
उल्लसित हृदय के आगे जग छोटा सा दिखता है, उम्मीदों.. में बंध कर यह नभ बौना.. सा लगता है। भाव: उल्लास और उम्मीद से ही यह दुनियां जीती जा सकती है। पर ईश्वर विश्वास, उम्मीद और उत्साह से ही खोजे जाते हैं। हर किसी में बह.. रहा मैं, एक सा, हर एक.. . क्षण पर क्या करूं! रुकता नहीं मैं एक पल भीतर किसी के। भावना और भाव बनकर बह रहा हूं…, देख… तो अंतर… में तेरे, आदि.. से, चिर काल…से ही, संग तेरे। भाव: ईश्वर हर समय इस समष्टि में सर्वमय स्थित है, वह अपनी क्षमता से ही विश्वरूप हो स्वयं गतिमान हैं। वह शक्ति हैं ऊर्जा हैं अतः बिना आत्मजय किए उनका स्थिर रूप संज्ञान में नहीं आता। तूं पकड़ता.. है, छोड़ता.. है रूप.. की बिछलन.. मेरी ये आंतरिक गहराइयों….. में रुचि.. तेरी बिल्कुल नहीं है। हूँ खड़ा…. तेरे सामने.. मैं हंस रहा, खिल रहा, गुंजारता आवाज देता… फिर रहा हूं देखता मेरी ओर तूं बिल्कुल नहीं है। भागता है तंग गलियों की तरफ तूं बंद हैं जो कुछ ही आगे, जानता हूं, पर छटपटाहट, बेकली तेरी देखकर सोचता हूं, बस अभी, आगे यहीं, थक जाएगा। भाव: हम संसारी लोग संसार को ...