जीवेम् शरदह् शतम।

बीमारी एक है 

सबको…

सुना है.. आज मैंने.. यह, 

बीमारी.. है वही,  … सबको

सिमट... मिट जाएंगे 

अब सब..।


बीमारी इतनी 

भीषण है,

बंद होती हैं, …हर आंखे…

नहीं फिर बुद्धि खुलती है

नहीं फिर आंख खुलती है 

सभी बस बैठ.. तकते है

करें क्या, वे सभी मिलकर।

नहीं कोई बात बनती है,

निराशा घेर लेती है..।


बीमारी है वही… 

सबको,

कौन बैठा यहां भीतर!  

बताता राह दुनियां की, 

घुमाता है सदा सबको।

बताता कुछ नहीं 

कल की…

की आगे रास्ता है क्या..

बीमारी कौन सी है वो.. 

लगी है हाय! हम सबको..।


सुना है, उड़ते उड़ते यह

बीमारी भागने की है.. 

सभी भागेंगे बस इतना..

नहीं कोई अंत है उसका।


छोड़ कर गांव बस्ती को..

खेत खलिहान मटकी को..

छोड़ मां बाप बहनों को..

सभी रिश्ते भरोसों को..।


उड़ेंगे जल्द ही ये सब

किसी दडबों की बस्ती में।

समय से दूर बैठी जो

हजारों साल पीछे हो।


बचेंगे तब ही, ये सब, अब

छोड़ दें सारी तकनीकें

धरा पर तब बचेंगे ये

जमीं के साथ होंगे जब।


चलो कुछ काम करते है

धरा पर हम सभी मिलकर

जिएंगे अब... सभी मिलकर.. 

सभी का ध्यान रखेंगे, 

छोटा हो बड़ा कोई, सभी का, 

मान रखेंगे।

जिएंगे शत बरस तक हम, 

रहेंगे शत बरस तक हम..।

जीवेम शरदह् शतम,

जीवेम शरदह् शतम।

जय प्रकाश मिश्र


Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता