लिख सकोगे शब्द दो मुझे प्यार के क्या!
भाव: एक बूढ़ी मां अपने बेटे से बहुत दिनों से बहुत दूर है, वह बाहर विदेश में अपने पत्नी के साथ सुख से रह रहा है। मां ने बेटे को कुछ शब्द भेजे हैं। इन शब्दों के मर्म और अन्तस का आनंद लें। उसके उतावलापन का एहसास आप खुद करें।
तुम खुश हुए, नाराज़ हो क्या
लिख सकोगे
शब्द दो...
मुझे प्यार से... क्या?
सहज होना… कठिन है
यह जानती हूँ..!
पर सरल होना… मूर्खता
क्या!
इसलिए मैं पूछती हूं
नम्र होकर,
अरे बेटे!
लिख सकोगे
स्नेह के, दो… शब्द
मुझको, प्यार से क्या?
कौन सा स्वेटर बुनूं
तेरे लिए, उसके लिए
मैं सोचती हूँ, रातदिन
किस रंग की, किस ढंग की
एक फ़ोटो बहू के संग...
खुद भी अपनी....
मुझे भेज दोगे.....
आज..... क्या?
तुम खुश हुए, नाराज़ हो!
तुम लिख सकोगे, शब्द दो
मुझे प्यार से आज क्या?
सोचती हूं!
कुछ अलग दूं!
इस बार तुमको...
आगोश में आ-बांह तुझको
भर सकूं,
इसलिए मैं बांह लंबी
सिल रही हूं, हाथों की अपनी,
तुझे थामने को
हाथ लंबे और ज्यादा
कर सकूं…।
मुझे नाप अपने परिधि की
तुम दे सकोगे, जल्द क्या?
तुम खुश हुए, नाराज़ हो
कुछ लिख सकोगे!
आड़े तिरछे, अक्षर वही
बचपने वाले! शब्द में, मुझे
प्यार से क्या?
अंत क्या होगा ! उस मां का इंतजार इंतजार ही रह जाता है। दूसरा पत्र मुझसे लिखने को कह रही है।
जय प्रकाश मिश्र
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