कैसे उड़े आकाश में... छोड़ अपना देश हम।
प्रसंग: आज की लाइने मेरे जर्मनी पारगमन प्रस्थान पर लिखी गईं हैं। लखनऊ से दिल्ली प्रायः आता जाता रहता हूँ अतः उसे क्या लिखना पर उसके आगे मजेदार है अतः लिख रहा हूँ। श्री सर्वेश जी (मेरे लिए गगन दुबे, छोटी बहन के पुत्र) मेरे प्रिय भांजे आई आई टी दिल्ली में प्रोफेसर है। उनके वहीं अवंतिका स्टाफ क्वार्टर में रात्रि विश्राम हेतु रुका और प्रातः सात चालीस की महाद्वीपीय फ्लाइट पकड़ने के लिए ढाई बजे उठा फिर एयर पोर्ट जाना, और IIT परिसर में रात्रि में भी बच्चों का संचलन मुझे हतप्रभ कर गया। आप पुनश्च प्रस्थान का वृतांत पढ़ मजे लें। यह, सुबह तो थोड़ी अलग है, भोर के पहले के पल हैं सो रही फैकल्टी सभी, विक्रमशिला* में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की। अवंती* भी सो रही है, चुप पड़ी है, पास में एक से ले पांच तक के ब्लॉक के परिवार की, प्रोफेसरों की। विक्रमशिला* व अवंती* स्टाफ क्वार्टर क्लस्टर्स है मार्ग सब सूने पड़े हैं पर वीर हैं, रणधीर कुछ हैं जग रहे हैं, सत्य का प्रण ले चले हैं, गुच्छ में दो चार के हैं कुछ पढ़ कर चले हैं, कुछ पढ़ने चल...