एक तोता, पर कटा तुम्हे भेजता है नेह, अपना
भावभूमि: आजकल एक बहुत बड़ी समस्या देखने में पूरे समाज में आ रही है, लड़के हों या लड़कियां अच्छी नौकरी, या सफल रोजगार सेट होने के पूर्व या उच्चंत-शिक्षा आदि के चलते शादी ब्याह समय से नहीं कर रहे हैं अधेड़ हो चुके हैं। मां, पिता की बात मै सच कहता हूं आंतरिक बेदना से भर उत्साह हीन हो जीवन जी रहे हैं। बड़ी विकट स्थिति आ गई है। कोई जवाब किसी के पास नहीं है। नतीजा संतति के चलने की आशा खत्म और परिवार नगण्य हो रहा है। अगर सुधार न हुआ तो आगे का समय हिला देने वाला होगा। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें और आप केवल आनंदित हों, ईश्वर पर भरोसा रखें।
एक तोता, पर कटा
तुम्हे भेजता है नेह, अपना
धान की, इन बालियों के,
खेत से,
झुक गईं है, पक गई हैं
कह... रही हैं, आकर कोई
अब काट.. ले,
जल्दी.. इन्हें इस खेत से..।
अन्यथा..
झर.. जाएंगी, गिर.. जाएंगी
मिल.. जाएंगी, फिर.. ये सारी
आज कल के बाद.., जल्दी
मान मेरी,
साथ ही इस रेत.. में।
स्वर्ण... सी हैं,
रंग.. में, रूप.. में, सुंदर… बहुत हैं
गदरा.. गई हैं,
बादलों के प्रेम.. में।
हिल.. रही है, भार.. लेकर
तृप्ति.. का
क्षुधा जो संव्याप्त है, इस जगत में,
तेरी… देह में, देख तो आ!
एक के संग एक मिलकर
खेलती है
सृष्टि, का यह खेल कैसे,
स्नेह से।
ये बालियां हैं,
फुल…प्रूफ हैं, जब तक टंगी है,
धान के इस लहलहाते.. खेत में,
कवच.. हैं, पहने.. हुए
ये.. सुरक्षा का
डर.. नहीं इनको है कोई,
काले… पीले… मेघ से..।
एक तोता, पर कटा
तुम्हे भेजता है नेह, अपना
धान की इन बालियों के खेत से
झुक गईं है, पक गई हैं
कह रही हैं, आकर कोई
अब काट ले,
जल्दी इन्हें इस खेत से..।
छोड़!
अब, तूं...
धन.. कमाना,
और.. आगे.. बढ़ते जाना..
अंत क्या है? इस नदी.. का!
जानता है ? खारा… समंदर!
सच सुनो! मै कह रहा हूँ..
ठोंक कर के... ताल अपना,
आज तुमसे..
बस.."खारा.. समन्दर",
पूछ लो.. चाहो नदी से पास से।
इस लिए मैं.. कह रहा हूं..
प्यार… से,
सोच! अपनी जिंदगी का!
एक छोटा, घर बसा ले!
बेटे मेरे!
बस, मरने मुझे दे, चैन से।
सोच तो ये...
बालियां "बाली" रहेंगी, अरे! कबतक!
खेत ये धानी रहेंगे, अरे! कबतक!
सूख.. जाएंगे जो पल्लव.. डालियों के
फल.. नहीं, इनमें.. लगेंगे..
फल नहीं इनमें लगेंगे…।
इसलिए सब सोचकर
एक तोता, पर कटा
तुम्हे भेजता है नेह, अपना
धान की इन बालियों के खेत से
झुक गईं है, पक गई हैं
कह रही हैं, आकर कोई
अब काट ले,
जल्दी इन्हें इस खेत से..।
जय प्रकाश मिश्र
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