आग से मत खेल, सुन!.....

पद-परिचय: पड़ोसी मुल्क अपना.. आए दिन अपनी नापाक हरकतों से बाज़ आता ही नहीं उसी पर कुछ लाइने आप को सुपुर्द करता हूँ। इसे लिखने का कोई मतलब नहीं है मात्र लोगों को जो हाल की क्रूर, अमानवीय घटना से आक्रोश में हैं उन्हें आराम मिले बस इतना ही है। 

आग! से मत खेल, 

सुन!..... 

चिंगारियां मत फेंक, हम पर... 

हमारे...  आंसियां पर, इस तरह ...

बेखौफ होकर! 

हवा का रुख.. देख तो! एक बार मुड़कर! 

क्या कह रहा है, विश्व सारा, 

ले किनारा, आज तुझसे, धिक्कार कर! 

इसलिए, हम कह रहे हैं...

आग से मत ..... 


देख अपना रूप!  

कैसा हो गया है, यार तूं! 

क्रूर, निर्मम..  अधम! कितना..

अमानवीय! 

दूर होता मनुष्यता से, 

शिकारी हो भिखारी, लगने लगा है।

सब कह रहे हैं, 

देता नहीं, कोई भीख भी.., तुमको यहां अब! 

पूछता हूं! क्या ये सच है? 

पर, मैने सुना.... है! 

कमजोर... को, हर आदमी.. 

पालता है, जकातों पर, 

दान पर.. कम से कम

पेट... उसका, आखिरी तक! 

क्या तूं  बदतर..! उनसे आगे, और भी है, 

सुना है कहते हुए, तूं कमबख्त भी है? 


आखिर! क्यों नहीं देता 

तुझे, कोई जकात! 

मांगने पर! 

पर, पड़ोसी है, तूं मेरा, इसलिए मैं सोचता हूँ 

क्या कहूं, अब..

अरे! इतना... हुआ तेरे साथ, 

अब और तूं, क्या चाहता है... 

अल्लाह के कहर से डर! 

क्यों हुआ ऐसा, 

तेरे ही साथ, इस पर तवज्जो दे, गौर कर! 


मत मार! 

ह्यूमनिटी को ऐसे

अपनी करतूत से, 

पाप मत कर, नृशंस मत बन।


एक कतरा 

खून भी, बेगुनाह.. का 

डुबा लेगा, 

समय तेरा सुकून का, परेशानियों में

माथ.. तेरा तमतमाता, देगा राख में 

अक्ल तेरी..गर्त में., देश तेरा... गर्दिशों में

याद रख!  कुरान तो पढ़! 


जिम्मेदारी तेरी है...

बचा अपने मुल्क को, 

शर्म तो रख! 

गरीब, गुरुबे, अपाहिज, कमजोर

शायद अधिक हैं, तेरी तरफ, बचा उनको! 

किसानों को पानी मिले ध्यान में रख! 

भुखमरी के शिकार की 

अवाम को

रोटी मिले, इंतजाम तो कर! 


मांग माफी, आज ही तूं

राम का यह देश है, 

शायद क्षमा मिल जाय, तुझको।

तेरी, इस कायराना करतूत पर..

शर्मिंदा तो हो, सामने आ..।


बात मेरी सुन जरा तूं गौर से..

पकड़ लेगी लह्वर.. जो एक बार 

सुलगती ये आग... 

इसके ताप का, विध्वंश का, खयाल तो कर! 

अकड़ अपनी ढीली कर! 

गलतियों की गली तज, 

झुक जमीं पर, घुटनों पर, 

मांग माफी आज ही, देर होगी कल तलक! 


अरे! अंधी... है रे!  

ये आग!  सुन! 

सब जलेंगे, मान मेरी... 

खंड तेरे... कर बुझेंगी, आग..फिर! 

बाज आ! 

करतूत से तूं. अपनी अभी..

क्या कहूं! कैसे कहूं! 

तूं कर्स है! 

इस जमीं पर, राक्षस है.. साक्षात ही

आदमी के रूप में...

भस्मासुर बना, मुझे... लग रहा 

तूं रूप है।

पर, ज्वाल होगी कराल, अद्भुत, याद रख! 

जय प्रकाश मिश्र




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