शांति में इस वक़्त की टंकार सुन!

पग एक: नाम क्यूं लूं! नापाक का!

परिचय: कभी कभी जिनका जो काम नहीं वो कुछ ऐसा बोल जाता है वो भी सार्वजनिक जगह पर जो ऑफिसर ऑन ड्यूटी के लिए उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोगों की बात सुन रोना आता है। आखिर अभी कुछ दिन पहले हम एक थे। आप स्वस्थ कंपटीटर बनो अच्छी बात है। हमीं से पैदा और बाप को सलाह इज्जतदार आदमी की बात नहीं। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें। मैने अपना समय यह लिखकर बर्बाद किया है इसका मैं प्रायश्चित करता हूं।

नाम क्यूं लूं! नापाक का! 

बेहतर यही है 

चुप रहूं, 

पर क्या करूं!  

बड़ा सेनानी कोई है, एक "उसका"

बाप... जिसका, 

सच कह रहा हूं, पूछ लेना! 

हिंदुस्तानी.. ही था! आज भी है, 

कागजों में, दर्ज है, 

नाम उसका, 

इस देश में,

"मिटवा इसे, तब बात कर!" 

कहना उसे...।


अये! .. औलाद है तूं.. यहीं का 

रह जहां पर, 

अच्छा लगे, तुझको जहां पर! 

पर.. बाप से 

तूं, 

कर सके तो प्यार कर!  

गर नहीं, तो ढंग से तो, बात कर! 


तहजीब से रह! 

इज्ज़त का अपनी ध्यान रख! 

गर नहीं, तो कम से कम

बाप... का तो ख्याल रख! 


बक.. रहा था,  

"बता दो औलाद को  

नींव उसकी क्यों पड़ी

वो अलग है हिंदोस्तां से 

हिन्दुओं से अलग है, 

जात उसकी अलग है, 

मुस्तकबिल भी अलग हैं "


कौन समझाए उसे, 

जब तक जुड़ा था, हिन्दुओं से 

बात उसकी और.. थी, 

एक आवरण था रुख पे उसके, 

मनुष्यता का..

अहिंसक का, आदमी का, नेक का।


अलग होकर खो गया है 

आज!  सब कुछ...

आज वह प्रतिमान है... 

अराजकता, भुखमरी का! 


आतंक की उस नग्नता का, 

रूप जिसका, मूल जिसका, 

बीज जिसका, 

घुस गया है, बन गया है 

डी एन ए   ही उसका।


रो रहे हैं, जो गए थे, 

साथ उनके

परेशां हैं... लज्जित हैं कितने! 

देखता हूँ... छोड़ हिंदुस्तान को

बाप की पहचान को.. 

बे बाप के वे हो गए हैं,

आज जैसे।


शेर जैसे जी रहे हैं 

जो रह गए है

देख तो...  इस देश में, 

जन्नत में हैं वो, दोजख में है तूं! 


मांगता है भीख! 

लेकर कटोरा हाथ में

हर देश से..

और कह रहा है.. 

हम अलग हैं, हिन्दुओं से! 

सच कहा! 

तूं, अलग ही है, 

हम हिंदुओं.... से! 

हो मुबारक राह तेरी, 

बस तुम्ही को,

हो मुबारक चाल तेरी 

बस तुम्हीं को।


ये बेइज्जती, 

भुखमरी, दीनता, दीनी तेरी..

तुझको मुबारक! 

 पर याद रख! एक बात! 

अंग्रेजदाँ 

और लोग जो थे उस समय, 

अब यहां पर हैं नहीं,

ना रहे नेता वो अब.. 

जो, समझौता करेंगे भूमि से..।


बदला हुआ ये देश है, 

फ़िजाँ है बदली हुई, 

खोल आंखे देख तो।

दो राष्ट्र की थियरी नहीं।

अब... 

घर वापसी का वक़्त है! 

एक होंगे राष्ट्र कुछ, 

बस सब्र कर! 

और शांति के इस वक़्त तूं

बस भंगार की टंकार सुन! 

जय प्रकाश मिश्र

पग दो: बदलती परिभाषाएं और रिश्ते

परिचय: जीवन में परिस्थितियां ही परिभाषाएं गढ़ती है और हम अपने मतलब से रिश्तों को नाम देते रहते हैं। लोग वही होते हैं, पर उनका किरदार, समय तथा स्थिति या पोजीशन से रिश्ते और परिभाषाएं बदलती रहती हैं। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें, आनंद ले।

परिभाषा.. करूं 

क्या? 

क्या.. नाम दूं! 

मतलब से मैं..., पहचानता हूं,

लोग सारे, दुनियां सारी.. जहां तक हैं ।

यही तो, मैं देखता हूँ! 

आज तक..  

जो चले... थे, साथ... मेरे, 

रास्ते भर, सफर.... में  

साथी वही थे, 

जिंदगी में, मेरे अपने..।

अब जीत की, बारी है आई, 

उस, शिखर पर... कौन होगा?  

हम सभी में,

सबसे... पहले, 

पा रहा हूं! 

साथी सभी...,अब 

प्रतियोगी... नहीं, दुश्मन..हैं, मेरे।

इसलिए तो कह रहा हूं

परिभाषा.. करूं क्या? 

क्या.. नाम दूं! 

मतलब से मैं..., पहचानता... हूं

इन सभी को।


चल छोड़ याराँ, 

शिखर की वह बात थी..

जगह कम.. थी!  

एक ही, को... जीतना था

बात, थोड़ी, खास थी।

मैं चढूंगा सबसे... पहले.. 

चाहना.. थी, 

जिद.. थी, कुछ की। 

ऐसा हुआ, होना ही था! 

बात.. कोई भी नहीं! 

पर जब लगी वो आग, नीचे 

बिल्कुल.. तभी

बुझाना था, साथ मिलकर 

एक साथ, 

आ जाते सभी...  

जगह भी तो खूब... थी

पर वे, न अब साथी थे मेरे,  

ना मेरे दुश्मन.. कोई! 

गद्दार थे! 

बुझानी थी आग, 

वे...

नीचे... उतरे ही नहीं! 

सच! क्या है?  

सोचता हूं! अचंभित हूं! 

कौन है साथी मेरा, कौन मेरा मीत है, 

कौन है दुश्मन यहां, कौन मेरी हीर है! 

सब मतलबों की बात है! 

सब परिस्थिति की बात है।

जय प्रकाश मिश्र




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