समय की चादर जुलाहा बुन रहा था.. ।
पृष्ठभूमि: समय एक अद्भुत चीज है, यद्यपि यह स्वयं में कुछ है ही नहीं! यह तो कल्पना की दो सीमाओं में कैद एक अंतराकाश मात्र है। समय बाहर संसार में नहीं हमारे भीतर, हमारे मस्तिष्क का एक उत्पाद है। हर मस्तिष्क की दक्षता पर समय का जीवन काल या मान बढ़ता और घटता है। वास्तव में हमारे जीवन काल के विभिन्न परिवर्तनों से बना यह यह एक शानदार रंगीन चादर है जिसे हम मस्तिष्क में चेतना के माध्यम से बुनते, सहेजते और रखते, और अतीत से जोड़ते रहते हैं। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें और आनंद लें। एक जुलाहा.. बुन रहा था एक कपड़ा समय... का, दूर था हर धुंध से, सूत्र... ले परिवर्तनों... का, हाथ में, बैठा.. हुआ, मस्तिष्क.. में, हर आदमी के.. देखता हूं! रोज उसको जोड़ता.., बुन.. चुके, पुराने मिले, उस भाग से, संस्कृति के, याद के, और इस इतिहास के अतीत से। भाव: समय का कपड़ा, हमारी चेतना, दिनरात दुनियां के धुँध से दूर मस्तिष्क में, जीवन की घटनाओं और परिवर्तनों को ले, ब्रेन में बुनती रहती है और इसे अपनी संस्कृति, इतिहास और स्मृति से जोड़ती तह पर त...