निपात! और भूमि ही अंतिम आधार!

पृष्ठभूमि: यह हम सभी के जीवन पर लिखी गई लाइने हैं पूरा पढ़ेंगे तो अच्छे से जान पाएंगे पूरी बात! कि हम क्या हैं, क्यों यहां हैं, अपना रहस्य क्या है। जीवन क्या है सभी की एक ही गति कैसे है। पढ़ें और मात्र आनंद लें। निपात यानी गिर जाना या आवरण विहीन हो जाना और दुनियावी सारे कवर त्याग अपने मूल रूप में आकर बिना किसी अहंकार के होना। धरती पर गिरना यानी मूल स्वभाव में बरतना। अंत सभी का ऐसे ही होगा जैसे पेड़ों से गिरी पत्तियां, पुष्प या पके फलों का होता है। सारी संपत्तियां यानी दुनियां के ये आकर्षण एक दिन समाप्त होते ही है अतः ज्यादा टेंशन नहीं लेने का, आगे पढ़ें।


निपात! और भूमि ही अंतिम आधार! 

सूख कर गिर जाती हैं, 

ताजी, हरी भरी, धूमिल होती ये पत्तियां

मिट्टी में मिल, मिट्टी ही बन जाती हैं 

ये सारी की सारी.. संपत्तियां..।


पकते, पीले, सुरमई होते 

सुगंधित ये फल 

गुलाबी, लाल, सुर्ख से काले होते, 

सभी... पल प्रतिपल 

सूखती, बदरंग होती वज्र सी 

ये डालियां, 

उड़ती ऊंचे आकाश में .. दीखती 

ये सारी चिडियां..  

मिट्टी में मिल, मिट्टी ही बन जाती हैं: 

ये सारी की सारी संपत्तियां..।

भाव: सुरमई फल यानी आकर्षक रूप और आकार, ऊंचे उड़ती चिड़ियों मतलब आज बहुत ऊंचे पहुंचे लोग, सबका एक ही अंत होता है। 

भागते, दुर्दांत, हैवान, ये बली पशु,

और ये, आदमी की जात! 

ऊपर उठते तो हैं, बढ़ते भी हैं, 

पर होता है निपात!  

क्रमशः एक दिन सबका! 

यही धरती, सबको कर लेती है, 

अपने में आत्मसात! 

भाव: अपनी पृथ्वी की यह विशेषता है कि यहां हर चीज धीमे धीमे अपने को विकिरित, रेडिएट कर विकार ग्रस्त होती अपनी ऊर्जा को बाहर विश्व में दान करती पुरानी होती रहती हैं और पुनः धरती में माध्यम से ये सारे रेडिएशन पुनः जीवन चाहे मानव या जीव जंतु या वनस्पति बनते रहते हैं और यह क्रम चलता रहता है।

ऊबती नहीं है, हर दिन नए फूल

नई पत्तियां ले लेकर, 

खिलती है! 

नए रूप में, नई ऊर्जा के स्तरों पर 

उठती, इठल करती है।


हॉफ लाइफ पीरियड 

हर एलिमेंट्स का होता है 

सुना था, 

ऊर्जा में बदलते, हर क्षण 

तेज.. या धीमे..., 

हर...द्रव्यमान को सुना था,

कुछ लाल होते, विकिरण बिखेरते, 

क्रोधी मनुष्य से, उबलते.. रहते,

आस पास के लोगों को 

अपने विकिरण से बीमार करते, 

मारते, सुना था।

भाव: जैसे रेडियोएक्टिव तत्व आस पास विकिरण से लोगो को हानि पहुंचाते हैं वैसे ही क्रोधी लोग भी आस पास के लोगों को हानि और दुखी करते हैं। ऐसे लोग हर बात पर पिनकते और लाल हो जाते है इन्हीं अस्थाई तत्वों की तरह।

पर 

हर विकिरण को 

पुनः द्रव्यमान में बदलते,

इस पृथ्वी को, मैने!  कैसे!  चुना था

मैं विकिरण ही था, जन्म से पहले, 

चमकता रेशे सा, 

कल्पना के परों पर चढ़ा था।

भाव: अभी हम यही जानते हैं कि हर पदार्थ जो दृश्यमान है वह कुछ न कुछ ऊर्जा प्रकीर्तित फैलाता है तभी तो दिखता है। पर आत्माएं नभ में विकिरण के रूप में अदृश्य होती हैं पर ऐसे ही उनका अस्तित्व होता जरूर है। और यह क्रिया विकिरण से द्रव्यमान बनना भी साथ साथ चलता है जिससे हमारा जन्म होता है। प्रेम ही जोड़ता है आत्मा की इस विश्व से जीव के रूप में कैसे खुद पढ़ें।


उतरा, 

जहां देखा प्यार , 

लालच में फंसा

मैत्री जिन दिलों की देखी, 

उन दिलों में उतरता 

उदर से होता गर्भ में जा बैठा था।


खर्च होता हूं!  

रोज थोड़ा थोड़ा, थोड़ा

कुछ भी कहो तुम! 

फेंकता हूं रूप की किरणे तुम पर

कुछ भी कहो तुम! 

ऊर्जा हूँ!  खर्च हो जाऊंगा!  

पूरा किसी दिन! 

कुछ भी कहो तुम! 

विकिरण बन फिर यहीं आऊंगा 

कुछ भी कहो तुम! 

जय प्रकाश मिश्र






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