ये बेटियां मेरी बेटियां!
भाव: संसार में हमारी बेटियां ही नारी शक्ति की विशिष्टता को प्रमाणित करती है , वह इस संसार के संस्रिति का कारण मूल हैं। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें।
बेटियां ही उत्स हैं,
इस नियति की
संसार जिनसे उपजता है,
पालती हैं,पढ़ाती हैं,
जन्म देतीं
विश्व को इस,
रूप देतीं,नौ महीने गर्भ में
निज रक्त देकर सींचती हैं।
है कहीं कोई? बता तो!
धैर्य जिसका,
इतना बड़ा हो!
पेट पर ले भार
शिशु का अनवरत तीन किलो
नौ महीने, प्रसन्नता से!साधता हो।
विश्व का आधार हैं ये!
सृष्टि का सौंदर्य हैं,
क्षमा है, ये प्रेम हैं,
करुणामयी हैं।
देख तो
मां, बहन, बेटी से आगे
आदि का,
आदि से ले, आज तक,
विस्तार हैं ये।
वरदान इनको मत कहो,
ये देवि हैं,
वरदायिनी हैं, शक्ति हैं,
आदि रूपा, रूप हैं,
आधार हैं, परिवार की
सुमति का संसार हैं ये।
ये बेटियां ही, भविष्य है
भविष्य..के भी,भविष्य..का
हर प्राण का ये प्राण हैं,
ममतामयी हैं, वेश में।
जय प्रकाश मिश्र
शीर्षक: उम्मीद भर कर तुम जिओ
भाव: हम लोग भावनाओं और कल्पना में आशंकाओं के चलते, भयग्रस्त हो हार मानकर कल की जगह आज भी दुखी रहते हैं। यह ठीक नहीं प्रकृति को देखें वहां भय और संशय को स्थान नहीं सर्वदा प्रेजेंट और अंतिम क्षण तक आनंदित। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें।
छोड़ आया हूं, उसे, उस हाल में
रोता बिलखता,
वह आदमी है,
हाथ भी हैं, पैर भी हैं, पास उसके।
भाग्य को वो... दोष दे.. दे..
कह.. रहा है, क्या करूं, मैं
मैं हार.. कर, हर ओर.. से।
मरुभूमि सी
इस... जिंदगी... में,
अंत अपना देखता, डर.. कर खड़ा हूं!
लग रहा मरने... से पहले, मर रहा हूं।
पर देखता हूं, सूखी हुई,
ददरी.. भरी, मरु.. भूमि को
जल.. जहां बिल्कुल नहीं है,
कोइ आशा,
नमी.... की भी तो नहीं.. है।
फट.. गई छाती... हो जिस,
उस.. भूमि पर
तप्त.. बहती, झुलस... देती,
हवाओ के जोड़ पर..
सूखती.., मृडमयी.., इस धरा पर
एक... पौधा, बहुत नन्हा
दुबला, पतला, हिल.. रहा है
फूल.. लेकर,
बहुत छोटा पर महकता
बहुत हल्का, थोड़ा पीला
खिल खिलाता
हंस.. रहा है।
अंत के, उस पल से पहले,
मुझको लगा कुछ कह.. रहा है..।
जब तक जिओ, तुम खुश रहो,
मत कोस.. किसि को!
छोड़... दो भविष्य को,
बस.. आज को,
अब.. को जिओ ।
वर्तमान को सिर.. पर रखो।
उम्मीद को भरते रहो,
सीनो में अपने, भय छोड़ कर
डर छोड़ कर, आगे.. बढ़ो।
जब तक जिओ.., जिस हाल में हो
इस फूल.. से सबक..तो लो।
जय प्रकाश मिश्र
Comments
Post a Comment