दूर है हर तर्क से यह दूर है।
भाव: हम सामान्य व्यवहार में चाहे जैसे हों पर अपने अवचेतन मन की दृष्टि से लगभग समान कैटेगरी में आते हैं। विपदा-काल में सभी एक सा ही व्यवहार करते हैं चाहे विद्वान या सामान्य-जन कोई भी हो। इन्हीं पर कुछ लाइने पढ़ें और आनंद लें।
कुछ… अलग है, पास सबके
सुरक्षित है, अंतरों में,
यह दीखता बिल्कुल नहीं,
पर, झांकता, अव-चेतनों से।
हर निर्णयों में, भ्रांति में
संभ्रमों, उत्क्रांति में,
बीच… में, हर समस्या के
चुप… निकलता, दुर्दिनों में।
हर तर्क… से यह..पार है
हर समझ… से यह… दूर है
अपरिवर्तित, वर्तित सदा
चुप-शांत बैठा… है मनों में।
भाव: अवचेतन मन/ मस्तिष्क की शक्ति अद्भुत और तात्क्षणिक प्रत्युत्पन्न प्रेरण से संपन्न होती है। यह स्वयंभू है और हमें सदैव दु:स्थिति में सहायता देती है जिसे प्रायः हम भाग्य बल भी कह लेते हैं। इसके कार्य चमत्कारिक होते है और हमारी सामान्य क्षमता से बेमेल हो चमत्कार कर देते हैं।
यह स्वयंभू… है,
बनता... है खुद
इस विश्व का सौरभ है यह,
जीवन इसी पर है टिका,
जीवन इसी संग बह रहा।
यह संक्रमण से दूर… है
शुद्ध है, परिशुद्ध… है,
भाषा, विषय, विज्ञान,
सारे तर्क से, भी दूर… है।
यह मूर्तता में बस रहा
अमूर्तता का रूप है,
विश्वास है, यह,
सच कहूं!
जग इसी से चल रहा है।
उम्मीद से यह बड़ा है..
प्रार्थना के पार है!
विश्वास है यह आत्म में
सारे जहां में व्याप्त है।
भाव: संसार में विश्वास अपरिमित शक्ति रखता है और इसकी शक्ति अप्रत्याशित है, हमारा जीवन इस विश्वास की शक्ति से हर समय बंधा रहता है और इसी के कारण हम सा तुष्ट, स्थिर, शांत, और प्रसन्न रहते हैं। जिनके जीवन में अविश्वास हो आप देखें, उनके पास सब होने के बाद भी वे हर क्षण विभ्रम में सशंकित और अस्थिर, दुखी रहते हैं।
विश्वास ही वह शक्ति है
विश्व जिस पर चल रहा है।
विश्वास ही से, शांति है
विश्वास से ही संतुलन है।
भाव: विश्वास कोई आम चीज नहीं, यह अति महत्वपूर्ण भाव है। यह पूरे जीवन की गतिविधि से अपनी मौलिकता में बनता है और इसको किसी चीज की कोई छाया छू नहीं सकती, यह तर्क से परे, अटल होता है।
विश्वास क्या है?
कैसे बना यह? सोचता हूं!
विश्व की इस वास्तविकता
के परे..
कुछ महकता.. महसूसता...
है,आत्म में
इस तरह महसूस हो हो
छनता हुआ
भींनता… अंतर्मनों में
जो सिरजता
वही है विश्वास बनता।
जो, दूर है,
हर….तर्क से
स्थिति… से, समय… से,
स्थान… से, व्यवधान… से
वही तो, विश्वास बन बन,
बैठता है, आदमी में।
विश्वास भी एक किरण है
सुंदर, सुनहली,
रुपहली
आधार बनती, जिंदगी की,
आशा है यह,
बढ़ती हुई
शक्ति है यह, हृदय की
साधन है सारे यज्ञ की।
विश्वास..ही वह धुरी.. है
जिस पर टंगे..मन,बुद्धि,सारे
ज्ञान..से विज्ञान..
ले
अध्यात्म..के, सूरज..सितारे
आनंद...जिस पर झूलता है
झूलते हैं सूत्र..सारे,
जिंदगी के हर किनारे
विश्व के भी राज सारे।
भाव: इस दुनियां में विश्वास सच नियामक, नियंत्रक,और सर्जनात्मक शक्ति है।
जय प्रकाश मिश्र
अत्यंत सराहनीय रचना है यह सत्य है कि विश्वास ही है जिसके कारण चीटीॅ इतने विशाल पर्वत पर चढ जाती है।
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