समय की चादर जुलाहा बुन रहा था.. ।
पृष्ठभूमि: समय एक अद्भुत चीज है, यद्यपि यह स्वयं में कुछ है ही नहीं! यह तो कल्पना की दो सीमाओं में कैद एक अंतराकाश मात्र है। समय बाहर संसार में नहीं हमारे भीतर, हमारे मस्तिष्क का एक उत्पाद है। हर मस्तिष्क की दक्षता पर समय का जीवन काल या मान बढ़ता और घटता है। वास्तव में हमारे जीवन काल के विभिन्न परिवर्तनों से बना यह यह एक शानदार रंगीन चादर है जिसे हम मस्तिष्क में चेतना के माध्यम से बुनते, सहेजते और रखते, और अतीत से जोड़ते रहते हैं। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें और आनंद लें।
एक
जुलाहा..
बुन रहा था एक कपड़ा
समय... का,
दूर था हर धुंध से,
सूत्र... ले परिवर्तनों... का,
हाथ में,
बैठा.. हुआ, मस्तिष्क.. में,
हर आदमी के..
देखता हूं!
रोज उसको जोड़ता..,
बुन.. चुके, पुराने मिले, उस भाग से,
संस्कृति के, याद के, और
इस इतिहास के अतीत से।
भाव: समय का कपड़ा, हमारी चेतना, दिनरात दुनियां के धुँध से दूर मस्तिष्क में, जीवन की घटनाओं और परिवर्तनों को ले, ब्रेन में बुनती रहती है और इसे अपनी संस्कृति, इतिहास और स्मृति से जोड़ती तह पर तह बनाती रखती रहती है।
कौन है
यह जुलाहा?
वह.. चेतना है आपकी!
नित्य.. बुनती, घटनाक्रमों.. को,
चादरों.. में, समय के,
और रखती, सहेजती
लपेटती, थान रूपी स्मृति के
कोष में,
मस्तिष्क में, हर आदमी में
अनवरत, दिनरात में हर काल में।
भाव: मानव मन और मस्तिष्क की एक सीमा है एक स्पॉन है, इस ब्रह्माण्ड की गतिविधियों में जिसमें वह अपना संसार चुनता, बुनता और जीता है। समय तेज स्पीड वाले के लिए तेज और धीमे वाले के लिए आराम से महसूसता है।
एक,
तय स्पॉन है,
सामान्यतः, मस्तिष्क का हर,
परिवर्तनों को देखता
वह समझता
हर राज उसके रख सके,
परिवर्तनों के साथ में।
बुन सके कपड़ा
जुलाहा,
तेज कितना
समय उसका बदलता है
साथ इसके, घटता, बढ़ता जान लो।
ब्रेन.. से है, समय, पैदा
तीव्रता है, माप इसकी
सूक्ष्मता है राज इसका, जान लो
पर कहीं ये सब जुड़े हैं, सौर से,
नभ से,
कहा मेरा मान लो।
स्थान क्या है?
आयाम है, तीन अक्षों में बंटा
एक बिंदु से,
बिल्कुल किनारे, जो है सटा!
आदि से,
नितांत पीछे, सबसे कोने
कमरे में जैसे एक कोना!
और सब कुछ नप रहा है,
आमने या सामने, ऊपर या नीचे।
समय क्या है?
परिवर्तन इसी आयाम में!
हर एक क्षण, हर एक कण का
हर एक क्षण में,
हर किसी में, हर जगह में
रूप में आकार में, चमक में,
स्पंदनों में
आंसुओं में, खुशी में,
कल्पना के लोक में..।
समय क्या है,
उड़ रहा आयाम हर क्षण
बदलता जो हवाओ संग,
मन ही नहीं
हर स्वाद में, व्यापार में,
रास में, अंगार में
ध्यान से देखो इसे...
यह समय है बहता हुआ
यह समय है बहता हुआ।
हम सभी के मस्तिष्क में परिवर्तनों
के बीच में।
जय प्रकाश मिश्र
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