सुख प्रद, कल्याण प्रद स्वास्थ्य प्रद शांति प्रद हों।
घरौंदे घर नहीं, होते! जरूरत होते हैं; बेसहारों की, पाखी, पंछियों की। या समय के मारों की। जरूरत भर, बस! इतना की, गुजार लें, कुछ पल। सुरक्षित, बचा पाएं, अपनों को, अपने को, अंडों और बच्चों को। मौसम से, आदमी से, और क्रूर कुछ दरिंदों से। अपने… दुश्मन से? नहीं! नहीं! वो उनकी ही जात का होगा.. उसका कुछ तो नियम…कम से कम प्रतिघात का होगा। भाव: प्राण रक्षा का अंतिम उपाय है आसरा या आश्रय स्थल या घरौंदा। वह जीवन के साधनों की रक्षा के लिए नहीं, प्राणियों की प्राण रक्षा का अंतिम बिंदु है। पर मनुष्यता के शत्रु, कुछ मानव और दरिंदे जैसे कौआ, सर्प, गिद्ध आदि तथा कभी कभी प्रकृति की अपनी बाध्यता इन पर भी दयालु नहीं रहते। अतः इनसे बचें। घरौंदों का संबंध; जीवन रक्षा से अलग! नहीं! नहीं! कभी नहीं! धन-दौलत, रुपए-संपत्ति, कल की चिंताएं, भोजन वस्त्र, कुछ भी नहीं! इनका आश्रय लेने वालों पर, ऐसा कुछ होता… ही नहीं। वे.... तो... अपनी … देह और देह धारियों को.. ले के भागे पराए…...