तुम मेरे कभी पास आओ,

तुम मेरे कभी पास आओ,

तुम मेरे!  

कभी पास आओ! 

छू सकें पलकें हमारी,

छू सकें पलकें हमारी

कुछ इस तरह 

नजदीक आओ।

तुम कभी.... मेरे  पास.. आओ।


देखती!  

मैं, देखती.. 

डू….ब, जा…ऊं!  

तुझ में, ही...., 

पू…री तरह

एक होकर

बह सकूं, 

तेरे साथ मिलकर 

साथ चलकर।

ना…बचूं..., ना बचूं

मैं...ना बचूं,

कुछ इस तरह 

मुझमें समाओ! 

तुम मेरे कभी पास आओ।

कुछ इस तरह नजदीक आओ! 

 

थिर खड़े, 

हम तुम कहीं हों, 

कुछ सट के ऐसे

एक दूसरे से, 

आज ऐसे, इस तरह

देखता  "वह मुस्कुराए.."

गुनगुनाता गीत.. कोई,

दिल में उसके उमड़ आए! 

कुछ इस तरह नजदीक आओ; 

तुम मेरे कभी  पास आओ।


रो पड़े भीतर से वो

सिसकियां पर ले न पाए,

आंखे भरें, 

डबडबा जाएं,

पर बूंद बन ना टपक पाएं, 

सोचता कुछ दूर जाए,

ठिठक जाए,

वो वापसी का मन बनाए! 

सच!  इस तरह तुम!  पास आओ! 

आज मेरे पास आओ।


हमें देखने 

पीछे मुड़े जब

मुझको छुओ कुछ 

इस तरह तब

हिलकते दिल को पकड़ वह 

कसमसाता नजर आए।

तुम मेरे कभी पास आओ।

फिर मुझे ना भूल पाओ

कुछ इस तरह नजदीक आओ।


हम तुम मिलें,

कुछ इस तरह 

बादल, बदलियां बरसती

हों जिस तरह! 

भीगती, हों घुमड़ती

बन रसवती,  

पवन के संग गुल खिलाएं।

तन का अंग अंग बरस जाएं ।

तुम मेरे कभी पास आओ।


हम मुस्कुराएं

कुछ 

इस तरह

मुस्कुराते होठ तेरे,

होठ मेरे, मिल सकें।

आंख में आंखें फंसें 

कुछ इस तरह, 

बस उलझ जाएं 

झांकती मैं उतर जाऊं

मन के भीतर

बैठ जाऊं, प्यार से 

फिर बैठ कर तेरे दिल के भीतर

दुनियां बसाऊं एक सुंदर

कुछ इस तरह तुम 

प्यार से मुझको छुओ

मैं तरल बन बन तैरती 

तुममें समाऊं।

तुम मुझे ना भूल पाओ 

तुम कभी मेरे पास आओ।

 जय प्रकाश मिश्र 



Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता