ये दुनियां दारी है, समझ इसको..
दुनियां का हर प्राणी और हर वस्तु निश्चित ही एक सा ही मूल्यवान और महत्वपूर्ण है बस उसकी जगह पर उसे प्रयोग करने की कला आनी चाहिए। दुनियादारी और सारा व्यापार च समृद्धि इसी कला का निरूपण है, खेल है। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें, आनंद लें।
चीजें..
कितनी, कहां..,
रखी... हैं, कैसे..? यही दुनियां है,
आ बैठ..!
मेरे साथ, समझ इसको..।
स्टोर है, ये जहां..!
"सामान" भरा रखा है,
कीमत कम..! लगती है तुझे..
"नजर" पैदा कर..
तेरे ऊपर है, "बढ़ा" इसको...।
रंग "सारे" अलबेले हैं,
चमकीले, हल्के, भारी.. होते,
देख उन्हीं में
कितने हैं.. कैसे.. गाढ़े, फीके...।
बोरों में.. भरे रखे हैं,
इफरात में फैले... हैं
प्रकृति में, पौधों में, यहां की,
वनस्पतियों में.. चारों तरफ तेरे।
इस विशाल गठरी से..
एक रेख! निकाल, बहुत पतली...
बिल्कुल काली..
सुन..!
बस! रख दे...
उसे किसी अच्छे से, सुंदर से
मुस्कुराते, नयनों पे...
फिर देख.. "दुनियावी मूल्य"
कैसे बढ़ता है
उन आंखों का, कैसे बिकता है
वो काला, जो बिल्कुल "काला" था
बाजार में तेरे..।
यही दुनियां है! समझ इसको।
"वो"
"काजल" ही था..
फैला.. पुता, रखा था,
किसी के पूरे.. तन पर..
और किसी ने कंट्रास्ट... बना
आंखों में... करीने से लगा रखा था।
यही दुनियां है! समझ इसको।
प्रेम... भी ऐसा ही.. है, रे!
मान मेरी..
मैने... पहन रखा है, इसे
सिर से पांवों तक..
मुझे...
कोई... पूछता ही नहीं..
उसे देख!
उसने.. चश्में के शीशे... पे
इसे ऑयल सा, लगा रखा है
दीवाना है... हर कोई!
बाजार है ये!
दुनियां बाजार है, दिखावट का...
समझ इसको,
वक़्त के साथ चल, गर चलना है तुझे..।
अन्यथा.. आ बैठ!
मेरे साथ गर जीना.. है तुझे जिंदगी..
यहां बाजार नहीं
जीवन... है,
कुछ भी... बिकता ही नहीं,
बदलता भी... नहीं, टिकाऊपन.. है।
भरा पूरा माहौल है, हरे पौधों हैं,
खाद भी है उनकी...
यहां स्वीकार्यता है, दुराव
किसी से भी नहीं।
क्या है ट्रेजर?
दुनियां का.. रहस्य क्या है?
कोई पहचाने कैसे इसको?
प्रसिद्धि एक चमक है, सर्फेस की
भीतर की नहीं,
हीरा हो, सोना हो, मणियां हों
चमकती हैं
सुन! काली से काली हैं, पर चमकती हैं
इसीलिए तो बिकती हैं।
कसौटी भी काली है,
पर चमक से हीन है, इसीलिए
व्यवहार में कहीं भी नहीं दिखती है।
सर्फेस का खेल है सब,
चलो मिल साफ रखो, दुनियांदारी सीखो
एक्सीलेंस क्या है एक नजर
उड़ती,
थम सी गई जिस पर
बोरी तो बोरी
भरी रखी थी, वहीं नीचे।
छोड़
ये दुनियां दारी है
दुनिया बनती नहीं, पलती नहीं
बस सजती है इससे
धोखे में समृद्धि.. रखती है सबको।
जय प्रकाश मिश्र
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