चल छोड़! अब, यह, रूप का.., 
वैभव... सरोवर,
फनफ़नाती, यौवनों की.., 
नदी.. बहती, 
पार.. कर! 
अंग.. रस की मधुरता, 
संस्पर्शता, सौष्ठव सभी का, 
भूल जा..
लहर.. की यह उछल सारी
त्याग कर..! 
अब! 
आ नहा..! प्रिय 
साथ.. मेरे
झील.. के इस थिरकते, 
थिरते हुए, स्थिर से 
जल... में
स्फटिक मणि से भी सुंदर, 
परम शीतल, शांतिमय
तरल है, सरल है यह
स्वास्थ्य प्रद, संतोष प्रद, प्रशांति ही है।

छोड़ यह दुनियां 
भ्रमों... की, 
रंग है, 
बिखरे हुए, हर किनारों पर! 
बदलते, बदरूप होते, 
देख कैसे! 
छोड़ अब यह रास्ता, 
अंदर को चल! 
कोई जोहता है बाट तेरी युगों से
चुप चुप खड़ा हैं।

मैं....
कैसे जाऊं, 
अपने.. भीतर...
सीढ़ियां.., दिखती नहीं.. हैं,
अंधेरा... है, विकट.. सच.. में, 
सूझता, कुछ भी... 
नहीं है।

कोई 
कह.. रहा था, 
पकड़.. लो, एक धार को 
तुम.. 
जो भी पाओ.. 
पास.. में, पकड़े... रहो 
बस, छोड़ना... मत! 
शब्द*... हो, कोई वाक्य*...  हो।
वह.., रास्ता...,  बन जाएगा...
मनन... तुम करते रहो।
संयम.., उसी.. पर, तुम.. करो।

अब... लड़ाई, आंतरिक है
शत्रु अपना, हम.. ही हैं,
जानते, हर बात हैं, हम..
पर मानते कुछ भी नहीं हैं।
बस सत्य बोलें, साथ दें, 
करुणा करे,
बस और क्या है, प्रेम से मिलजुल रहे।
आत्मा के शत्रुओं को, 
हरा.. दें...
हम, खुद.. ही अपने.. दुर्गुणों को जीत लें।

क्या, तुम.. जानते हो? 
जो  तुम! जानते हो! 
जानते.. हैं लोग..! 
बेहतर..
मानते.. हो, 
यदि नहीं तो, मान.. लो।
लोक में ही प्रतिष्ठित है भावना, 
वह.., वही.. है
जिसके... लिए, तुम.. लड़.. रहे हो।
मर रहे हो, खप रहे हो
आदि से ले आज तक।
हर जतन तुम कर रहे हो।

उसने पूछा 
ज्ञान... क्या है? 
क्या तुम,जानते... हो? 
हां, कहा... उसने.. 
तुरत..,
बस चुप रहो!  मुंह खोलना मत! 
दूर हो..तूं, यहां से अब।

नहीं..., 
जब, मैने.. कहा
मुझे ना पता, यह ज्ञान क्या है
चल.. साथ आ, उसने कहा, बड़े प्रेम से
हम, खोज लेंगे, साथ मिल.., एक दिन इसे, 
एक दूसरे में।
बात बस
इतनी... थी, कहनी.., मुझे... तुमसे।

एक कुआं.. 
बहुत.. गहरे!  
चुप अकेले, घुप अंधेरे..
बहुत नीचे, जमी में था
दिखता नहीं था,
बहुत ठंडा, और शीतल रात दिन
सच कह रहा हूं, 
पानी... उसी से निकलता था। 
वह शांत था
बोलता उसको कभी, 
किसने सुना था।
ढूंढ लो कोई आदमी..
और फिर.., पानी पियो।

सत्य.. है, 
तो..., नग्न.. होगा
आवरण.. से, हीन.. होगा
धंसेगा, थोड़ा गड़ेगा, चुभेगा भी
बस इसलिए, की... वह सत्य होगा।
चुप रहेगा, सहज बच्चा सत्य है
आडंबरों से दूर होगा।
ढ़कोगे.. तो,
झांक 
लेगा.. पर सत्य होगा।

दो.. प्रखर शर 
थे सामने, दोनों गजब थे
एक पल में मृत्यु थी, और भावना 
अन्याय की, 
मृत्यु उसके वश नहीं थी
मरने से पहले अन्याय को 
मिटाना उसको पड़ा।




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