एक नदी की तलहटी में, स्वप्न सा यह देश है!

पद-परिचय: यहां जर्मनी में स्प्री-वाल्ड एक क्षेत्र है जहां छठी शताब्दी से कई सदियों तक सर्ब लोगों ने अपने लिए स्प्री नदी के पार्श्व में विशेष विशाल एरिया में नहरों, जल धाराओं, जल वीथिक प्रणाली का निर्माण किया। जो आज मानव के लिए अद्भुत धरोहर है। परम शांत, मात्र जल और पक्षियों के स्वर यहां आप सुनेंगे अन्य कोई भी आवाज नहीं किनारे मदमस्त करने वाले नजारे खिले पुष्प, निकुंज, सुदीर्घ लंबे पेड़, गाढ़ी हरियाली, और सदियों पुराने लकड़ी के बने घर उनमें अनन्यतम सौंदर्यमयी मुस्कुरातीं मानव मूर्तियां, प्राकृतिक सौंदर्य में पद-चाप मिलातीं, रम्यता चहुंओर बिकेरती सूर्यप्रभा देखते ही बनती है इसी पर कुछ लाइने आप मित्रों के लिए। एक झलक के लिए आप चाहे तो इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

https://drive.google.com/file/d/1dmnIbW_0PyQm6_unmDJKKMGrw3FlDtBf/view?usp=drivesdk


यह.. 

विश्व.. है, 

मनोहर.. है, खींचता.. है, 

ओर अपनी, मानता हूँ! 

पर  बुलाए वह, मौन.. रहकर, 

कोई जगह !  इस तरह...!

गर्व भर... कर..., 

यह तो गजब... है, पर सत्य है..! 

इस लिए ही लिख रहा हूं...

देख आया हूँ इसे, मैं आंख से सच! 


एक.. 

नदी... की, 

तलहटी में, बसा..,  सुंदर.... 

स्वप्न सा, मासूम..सुंदर क्षेत्र है यह!  

एक चुप! 

ना..,  हजार.. चुप यह ! 

एक भी है, ध्वनि नहीं, 

कृत्रिम यहां..पर 

दूर.. की भी.., कही की.. भी..

मुक्त.. है, हर प्रदूषण.. से, 

स्वभाव में कुछ अलग है यह। 


पुष्प भर कर बांह.. में, 

हरित... चादर, ओढ कर,

बादलों की ओट में, 

शिशु सरीखा खेलता है, 

गोद में, 

जल-सुंदरी के, 

सहज सुंदर, रम्यतम..अन्यतम यह।


अभिराम-नयना 

पालता है, देखता है, विरलतम 

जन सांख्यिकी को, 

बीच अपने..,

जो बने.. है, अंकित... पड़े हैं, 

अठा...रहवीं, सदी के.. भी 

पूर्व के भी।


नाव के अतिरिक्त.. कोई मार्ग हो 

इस देश में, इस तलहटी में

संभव नहीं है! आज भी..

पोस्ट को भी बांटते, 

नाव से, 

खुद देखा.. है मैने...

हंसती हुई वह.., जा रही थी.. नाव से.. 

बीच.. ही, जल धार.. के, 

खुद नाव खेती, अकेली...

पोस्ट लेकर साथ में, बांटती हर एक घर

मैने है देखा..।


निर्मल है सच! मुक्त मत्सर! 

मुक्त मच्छर! मुक्त सारी.. दौड़ से

खुद में रमा यह देश है, 

पुराना है, जल वीथियों के बीच में

धाराओं में बसा है, बीच में..

स्प्री नदी के।

"लब्बुनाव-वाइल्ड" जगह है, 

पोलैंड के थोड़ा पास में, जर्मनी की, 

जद में है।


तिर रही है.. कश्तियां.. 

धीमे... बहुत, 

छू कर.. किनारे, पास से, 

दिखाते... 

खिलखिलाते..

हंसते... हुए, कुछ... खिले.., 

कुछ अधखिले..., कुछ खिल रहे.. 

नवजात..!  

अनदेखे अभी तक..! 

लदे..., झुक.., कुछ कह रहे...

रंगीन कितने...

क्या कहूं... सुंदर है कितने, समझ तो

कैसे लिखूं! बस रंग दो हैं

लिख..ने को।


क्या हरीतिमा है! 

खेलती है हवा.. कैसे..

शीर्ष... पे, इन फुंनगियो..  के

नाचतीं हैं रश्मियां.. कैसे लहर... ले।

जल वीथि पर, आकर यहां खुद देख तो!

अद्भुत हैं ये! भवन.. सारे 

लकड़ियों के, पार पथ हैं लकड़ियों के,

कुछ भी नहीं है

प्रकृति से जो अलग हो...।

मछलियों को पकड़ने के 

लकड़ियों के जाल है, घर में लगे।

सब गजब है, 

पूरी नहर के किनारे 

लट्ठे लगे हैं, लाइनों से, पटरे खिले हैं।

थैच्ड हाउस पत्तियों के भी बने हैं

प्रकृति को, गर देखना हो, 

एक दिन में, जगह यह बेजोड़ है

मेरी समझ से।

जय प्रकाश मिश्र




 



 

Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता