आएं मिलें बर्लिन से... थोड़ा..

स्प्री नदी और बर्लिन का इतिहास

सांकलों में बंद... है, और रो... रही है

कर्म हैं, कुछ शेष, अब भी

इसलिए 

यह, बह... रही है

किनारों पर, कंधों पर... लिए  

इतिहास...

इस बर्लिन... शहर का 

आज भी, यह ढो रही है, 

नदी है, ये... 

जर्मनी की, "स्प्री"... नदी है।


जाने न कितने... 

राज... इसके जानती.. है।

देखा.. है इसने..., ढोया या इसने.., 

सीने पे अपने... 

नाज़ियों... को, 

उस कौम को, हिटलरों... को

इस पार से उस पार...! 

कितनी बार...! 

पहुंचाया है इसने.. 

अनमने हांफते... उस खौफ से।

हिटलरी सामान को... उन कैंपों तक..

दफ्न हैं, जो आज भी 

इतिहास में 

बस संस्मरण तक....।


पर सत्य है ये, वे एक दिन

सच आदमी थे, 

देख आया हूँ मैं, खुद, तस्वीर... उनकी

आज जो तस्वीर बन.. दीवारों पर टंगे.. थे।

समृद्ध थे, शिक्षित भी थे, वे गुणी थे

पुरोधा थे विज्ञान के 

बस जाति से, वे यहूदी थे

एक कमरा कितना छोटा, सिंकचों से बंद है

एक रोशनदान है बस शीर्ष पर

वो भी अधिकतर बंद है..

आमने और सामने दो डोर हैं बहुत पतले

नीचे रखा, भूषा भरा, एक टाट है

लेटने को और कुछ दिखता नहीं है..

सब बंद है... जीवन वहां रखा हुआ था

सीजने को, भीगने को आंसुओं से।

जय प्रकाश मिश्र

हिटलर के आंखों देखे कंसंट्रेशन कैंप 

एक देखा कैंप, मैने आज ही... 

शेड से बने हैं, बहुत लंबे, लाइनों से, 

नल लगे हैं कतार में ही, शीट हैं 

टायलेट की बिना पर्दे...

भूषा भरे, पुआल से.. नीचे रखे हैं लेटने को

खाट सारे तीन तल्ले.. एक ऊपर एक हैं

रखे हुए, पटरे खिले..

एक भी छाया नहीं, परिसर में है 

किसी पेड़ की 

आज भी, 

पेड़ कोई देखने को है नहीं.. 

सूखी हुई सी घास है.. 

चहुंओर निर्मित, बहुत ऊंची, बाउंड्री लगी।

भीतर कठिन कांटों भरी एक बाड़ है 

सट किनारों पे, हर तरफ 

उसके आगे गोलियां थी सनसनाती उस समय।

जय प्रकाश मिश्र

दीवार-ए-बर्लिन

दीवार-ए-बर्लिन गिर चुकी है,

ढह चुकी है, वर्ष कितने हो चुके हैं

एक दोनों हो चुके हैं

पर आज भी 

कहीं कोई दंश है!  

पूर्वी और पश्चिमी इस जर्मनी में

सभ्यता और संस्कृति में कहीं कोई द्वंद है।

नारे लिखे हैं इसी पर, किनारे खड़ी है 

स्प्री नदी के.. बहुत थोड़ी..

कंक्रीट की.. स्मार्ट सी.. इतिहास की

पक्की झलक है, दीवार यह इस देश की।

जय प्रकाश मिश्र


Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता