यह प्रेम क्या है!
तूं नहीं, यह वस्त्र तेरा, छू मुझे
रसभूति की, अनुभूति में
जब डूब जाए...
तो.. समझना..
प्यार की “शुभ परिधि” में
तुम आ गए हो।
जिक्र का झंडा, किसी के नाम का
राज्य में अपने लगाकर,
फहरता उसे देखकर
भीतर खुशी.. हो, फूटती..,
तो.. समझना
प्यार की “शुभ परिधि” में
तुम आ गए हो।
लरजती..
कोमल मुलायम.. भावनाएं
बांधती.. तुम्हें पाश में हों,
खींचतीं..
राग हैं वे, त्याज्य हैं वे,
जानना..
प्रेम ताजा, सख्त होगा,
लुज लुज नहीं रे.. जो, चिपक जाए,
अरे! वह मुक्त है,
चिप चिप नहीं रे!
खुद देखना,
वह मुक्ति का संदेश है रे!
जब तुम्हे, ऐसा मिले कोई,
रास्तों में, विलग जग से
तो.. समझना
प्यार की “शुभ परिधि” में
तुम आ गए हो।
प्रेम... होगा हृदय में
तो मुक्त.. होगा,
बंधनों के, बंध से वह दूर.. होगा
तन ही, क्यों,
मन में, उसे आनंद... होगा।
जब तुम्हे ऐसा लगे,
किसी साथ में
तो.. समझना
प्यार की.. “शुभ परिधि” में
तुम आ गए हो।
फूल, कलियां
प्रेम का ही भाग हैं
जिसमें नहीं है प्रेम, वह कंकाल है,
जीवित भले हो,
भूमि पर
वह फिर रहा हो,
पर सच सुनो, जब तक यहां है,
वह, धरा पर भार है।
कैसे जिएं हम साथ सबके
रास्ता वह "प्रेम" है,
कैसे मिलें हम साथ सबके
तरीका वह "प्रेम" है,
प्रेम से, जो हीन है,
वह धोख* है,
बस जिंदगी में।
जय प्रकाश मिश्र
धोख * गांवों में खेतों पर कपड़े की मानवीय आकृति असली मनुष्य नहीं
भाव: जीवन में प्रेम, प्रभु के समान ही आवश्यक है। प्रेम जीवन में सुगंध भर कर उसे महिमावान बना देता है। जब किसी के संपर्क से आप भीतर से खिलने लगें और मुक्ति का आस्वाद पाने लगें तो जानना सच्चे प्रेम से शुभ भेंट मुलाकात हो गई। और प्रेम करुणा से हीन मनुष्य नहीं एक ढकोसला है वह रस विहीन शुष्क और आनन्द से कोसों दूर रहेगा। आप का प्रेमी कभी भी किसी भी हाल में आप से अप्रसन्न नहीं हो सकता। क्योंकि वह आप से प्रेम करता है उसे आप से कुछ चाहिए नहीं। आपसे कोई भी अपेक्षा नहीं आपका सुख उसका सुख और आनंद होता है।
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