प्रार्थना: हे शारदे, वर दे!
मां शारदे! वर दे..
अनगढ़ हृदयों की भाषा का
सुंदर सुगढ….
शिल्पकार कर दे….,
वर दे! मां शारदे! वर दे…।
नंदनवन.. अप्रतिम अनुपम…
शीतलतम.. शब्दपुष्प मेरे…
अपने चरणों में..
रखने दे...,
वर दे! मां शारदे वर दे…।
मै अज्ञानी जन…,
रख पाऊं दीप… प्रथम..
महिमा मंदिर… तेरे अंतर्तम..
ऐसा साहस मुझमें… भर दे,
वर दे! मां शारदे! वर दे….।
जय प्रकाश मिश्र
पुष्प द्वितीय: नियति नटी यह!
नटी है,
नित नवल है, यह!
हर प्रात की है लालिमा....
प्रेम की मदिरा मचलती, परात्परा है....
प्राण की आधार है... यह प्रणयनी है।
निष्कलुष है, कली है, यह!
परिधान पहने ज्ञान का
देख कैसे खड़ी है,
नटी है यह, नित नवल है!
खड़ी है..
संज्ञान, बन कर हृदय में
मान है यह!
आ चलें उस ओर…
जहां, वह बह… रही है..
कल कल निनादित हो रही है..
नर्तकी.. वह नर्तनी.. फुफकारती…
देख कैसे..! लहर बन बन..! तन रही है।
नटी है यह,
नित नवल है !
हर प्रात की है लालिमा....
प्रेम की मदिरा मचलती, परात्परा है....
प्राण की आधार है....यह नियति है।
यह प्रकृति है..
यह मां है सबकी.., नटिनी नटी.. है।
शक्ति है, यह काल है
काल को भी वेधती, कपालिनी है।
नटी है यह,
नित नवल है !
हर प्रात की है लालिमा....
प्रेम की मदिरा मचलती, परात्परा है....
प्राण की आधार है....यह नियति है।
जय प्रकाश मिश्र
Comments
Post a Comment