कौन कहता है, मकां सामां, की चाहत है बची,

कौन कहता है, 

मकां सामां, 

की चाहत है बची,

अब नहीं कोई जगह 

रखने को 

बाकी है बची।

एक उम्र के बाद दुनियावी वस्तुएं लोगो के लिए अपना मैजिक या लस्ट खो देती हैं। उस बदली जिंदगी में मकान और अन्य वैसे सामान की बढ़ती इच्छा समाप्त हो जाती है। जिंदगी में सामान नहीं लोगो की जरूरत आन पड़ती है।

जिंदगी की ढाल पर 

चाहत की बातें मत करें,

जिंदगी की शाम में 

बीती कहानी मत कहें।

उम्र के एक पड़ाव पर या ढलान पर इच्छा अनिच्छा अपना से ऊपर आवश्यकता महत्व रखती है । बीती बातें बिसारने का मन होता है।

देख आया हूँ निराले 

कैनवस की शान को,

रंग पुती दीवार को 

उस जगमगाती शाम को।

अपने अपने समय पर हर शख्स जिंदगी की रंगतों से, चकाचौंध से वाकिफ होता ही है। बेशक आज वह जीवन के आखिरी मोड़ पर ही क्यों न खड़ा हो।

झिलमिलाते रूप की 

बिछलन भरी वे नेमते,

फूल के कलियों सरीखी 

मुस्कुराती सूरतें।

रूप रंग, सौंदर्य सदा से रहा है, यह हर काल में अपने में चरम पर ही रहता है। हर उम्र के लोगों से सबका साबका पड़ता ही है।

हाथों में हाथ डालकर 

किलकार करती जोड़ियां,

भागते ऑटो पकड़ती 

चुलबुलाती जोड़ियां।

फिरंगी बन भागते लोग और जीवन की दौड़ में शामिल भीड़ का सामना सभी लोगों ने किया है।

प्रेम का जो पर लगाए 

उमड़ते थे बादलों से,

आज तन्हा हो गए है 

जिंदगी की मार से।

जिंदगी के थपेड़े जिंदगी को उजाड़ते भी है और कभी कभी सूना भी कर देते हैं। जो लोग प्रेम पथ को सर्वस्व मानते थे वे भी आखिर थकते ही हैं।

फूल सा तन, 

कली सा मन,

हाथ मे उम्मीद लेकर, 

डोलते पग, 

आस का दीपक 

संजोए, 

हाय! कैसे ?

देखते ही देखते

मौन मैना हो गई थी, 

एक दिन!

बिल्कुल अचानक!

उड़ गया पंछी कहीं था,

ले गया खुशियां सभी था।

कभी कभी हंसती खेलती जिंदगी में काल का अप्रयाशित दखल भी देखा गया है। एक चपल हिरनी सी शक्ल गूंगी या मौन हो जाती है। हमारी खुशियां लोगों में गुथी होती हैं। उनका अभाव दुख पैदा करता है।

बांधती धागों का बंधन

बटवृक्ष में विश्वास का नित, 

जोहती थी बाट, ना छूटता था, 

एक भी दिन।

कुछ के मित्र, हित बिछड़ जाते हैं उनके लिए अपने लोग पीपल के पेड़ में धागे बांधते है, अरदास नित्य करते हैं।

हृदय की फरियाद के संग,

अनकही वे चाहतें, 

प्यार में एक साथ मिलकर

मांगी गईं वे मन्नतें।


मन्नतें चुपचाप जो मांगीं 

गई थी पाक दिल से,

थीं कहां पूरी हुई उस 

देवता की चाहतों से।

जिंदगी बदलाव का नाम है। मुरादे सबकी नहीं कुछ की ही पूरी होती हैं। यद्यपि सभी पवित्र मन हृदय से ही अपनी अरदास, प्रार्थना करते हैं।

इस भंवर की 

भाँवरों में, 

घूमती वो, खो गई,

एक दिन

अपने सफर बिच 

चलते चलाते खो गई।

वो रंग की 

किताब थी 

जो गल गई 

अपने

करम में।

हर किसी में ऊर्जा, जाग्रत शक्ति, सुंदर मन, होता है फिर भी संसार की समस्याओं, गतिविधियों और भंवर में फंस कर कितने विछुड जाते, अलग भी हो जाते हैं। बहुत बार कुछ विषयी लोग जीवन की रंगीनी में अपने को स्वाहा भी कर लेते हैं। अपने लोगो के लिए एक खाली जगह छोड़ देते हैं।

आज बैठा सोचता हूं!

कोई तो मेरे साथ हो,

बस सुकूं भर बात हो, 

होठों में एक मुस्कान हो।


देखकर जिसको जिऊँ, 

उम्र के इस मोड़ पर, 

भूल जाऊं खुद को भी अब

उम्र के इस छोर पर।


याद अपनी ही नहीं है 

कौन था शहरा मेरा।

याद तेरी भी नहीं है.. 

कौन था चेहरा...तेरा।

जय प्रकाश मिश्र

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