आंखों से देखते ही ये बिन बुलाए मेहमान क्यूं चले आते हैं

क्या फर्क है,

अंधकार में

और उसके रास्तों में, 

सोचो तो!

संसार ही तो 

मंजिल है 

इन सबकी।

रास्ता….. 

मन खुद ही है 

बनाता अपनाता…. 

हमे लेकर जाता।


जीवन है तो

एक प्रवाह बहता हुआ,

पर अशांति बहुत है।

रास्ते सुंदर तो हैं,

पर छल छद्म बहुत हैं।

किनारे शीतल दिखते तो हैं,

पर फलों में अंगारे भरे हैं।

अंधकार में चमकते ये तारे 

जगनुओं से

खींच लेंगें तुझे।

देखो न!

चमकते हैं वे,

टिमटिमाते हैं, 

पलकों पे लगे 

चम चम से,

किसी मायावी 

नारी के मुखों पे।

सोख लेंगे 

तुझे एक दिन,

अपने में, घेरे में, अंधेरे में।


एक बार दिल से 

दिमाग से सोचो!

अंधेरा… 

अंधेरा ही होगा।

तुम उजाले हो।

भोर हो, लालिमा हो।

उत्स हो, सत हो।

मन तो नहीं,

जो गोंद सा 

चिपकते चलो सबसे।

मुक्त, आत्मवान, अकलुष 

विशुद्ध हो तुम।


मन, विचार, संसार, अंधकार

उस चारपाई के पाए चार।

तुम दिव्यतांश हो।

प्रकाश अस्तित्व तुम्हारा।

भीतर विशद रूप तुम्हारा

देखो तो, अनंत शांति, 

विराट लहलहाता

करुणा सागर 

प्रेम की लहरे 

ज्ञान, विज्ञान

की फुहारे

स्वागत

द्वार, पर

खड़ी इंतजार

में हैं, 

तुम कब आओगे,

अपने भीतर का

द्वार खोलकर

अपने अंदर के

नैसर्गिक राज्य में।


मन क्या है 

विचार! 

जी! जो 

भीतर 

छुपकर बैठा है।

इसी में छुपे हैं

सारे रंग, रूप, 

राज और कलुष तुम्हारे।


दृष्टा, बन

तुम 

देखने 

मात्र की

गर्ज से 

दृष्टि 

डालते हो,

संसार ऊपर।

चिपक जाते हो

तुम उससे

अपने मन से,

विचारों से

विवेक से

बुद्धि से

संस्कारों से

स्वार्थों से

या जैसे 

या 

चिपका 

लेता है वो 

तुम्हें

रंग से

रूप से

हंसी से

वैभव समृद्धि से

चंचलता, लोलता, मधुरता से।

बंध जाते हैं दोनो

कैसे ये देखते देखते।

यही करते,

हम रोज रोज थकते।

आंखों में समाते ही

ये बिन बुलाए मेहमान

क्यों चले आते हैं?

ये सभी ऐसे।

चिपक जाते 

ले ले के

अपना सामान हमसे।

फिर दृष्टा, दृश्य, विवेक 

एक हो भरमाते सबको।

यही वह गांठ है जहां से

संसार पुष्प की

बेल निकलती, फिर

संसार बन फैलती,

फूलती, 

फलती,

लपेटती और

हम सभी को 

बांधती चली जाती।

हो निरीह, 

बन चालाक, 

या सेवाभाव 

के बीच हम खुश भी रहते हैं।

जय प्रकाश मिश्र

Comments

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  2. आप सभी का मन पढ़ता हूं। जब वह खुश पाता हूं तो खुश होता हूं।

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  3. आप सभी का मन पढ़ता हूं। जब वह खुश पाता हूं तो खुश होता हूं।

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