किसके लिए, पर फड़फड़ाते, उड़ते रहते, ये परिंदे

आधार अपनी 

बुद्धि का क्या?

संग किसके 

खेलती यह!

पांव के नीचे 

जमीं का, 

राज कैसे 

खोलती यह?


पृष्ठ जो 

फैला हुआ है, 

ज्ञान के पीछे 

गहर में,

सज रही 

दुनियां ये कैसे

देख तो, 

सहरे सजर में।


शब्द हों 

भाषा या 

बोली, 

भाव, 

शिखरों, 

घाटियों में,

कौन है वो 

पूज्य.... 

जिसके

गीत सारे... 

गा रहे हैं।


गान…

किसका हो रहा है,

किसके लिए हैं 

पुष्प खिलते?

किसलिए तूं 

जन्म लेता?

किसके लिए 

यह सूर्य उगता?

कौन है वह? 

जो छिपा है

कंदराओं 

के हृदय में।

किसलिए 

ये मस्त भौरे

ओढ़ते…. 

परिमल की चादर ?

किसके लिए 

आनंद होता,

किसके लिए हैं

सुमन खिलते ?


मन हृदय के 

बीच तेरे…

कौन है जो 

उमगता है।

किसके लिए 

पर फड़फड़ाते

उड़ते रहते 

ये परिंदे।


एक... है, 

वह....

एक.. था, 

एक.. ही होगा 

हमेशा...।

हां वही... है, 

"सच"... वही है! 

"सब"... वही है!

जान तूं...!


जय प्रकाश

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