क्या है तेरी राह सर्वरी? कुछ तो बोलो

 मानवता की सरिता

अनजाने इन कठिन तटों से,

ठोकर खाकर अविकल अविचल,

नदी बनी तुम बहती अविरल,

क्या मिलता है तुम्हें सर्वरी?

कुछ तो बोलो!

टकराकर, गर्जनस्वर करती,

फेन फेन शीतल जल करती,

शैल शिलाओं संग तू लड़ती,

अपनी धाराओं में उलझी

होगा क्या अंजाम सर्वरी?

कुछ तो बोलो!

पहन तरंगों की चादर तू,

विपिन, बीहड़ों में है फिरती,

सुंदर भव्य किनारे कितने,

तेरे दाएं बाएं खिलते,

बची है कितनी चाह सर्वरी?

कुछ तो बोलो!

अब तू मत ले रूप भयानक,

तोड़ न अपनी मर्यादा पथ,

जाने कितने बह जाएंगे,

जाने कितने मिट जाएंगे,

लेते तेरे एक ही करवट,

क्या है तेरी राह सर्वरी?

कुछ तो बोलो!









Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता