गीत होगा मीत का, तो छू ही लेगा,

कल्पना लोक में अतीत

गीत होगा मीत का,

तो छू ही लेगा, 

उर तुम्हारा।

हृदय में मिल

सांस में घुलता हुआ फिर,

बज उठेगा साज सा

अंतर में तेरे।

याद में तुझको लिए 

नर्तन करेगा 

मन के 

आंगन।

भीग जाओगे, 

वहां तक,

छोड़ आए थे

जहां पर।

बह उठेगी धार

रस की, कुनमुनाती।

पास आती 

हाय प्रिय के

पास का अहसास

पा तुम खिल उठोगे।

मन बना पावन 

पवन सा झूमता 

तेरे अंग, 

झुरझुर 

बह उठेगा,

तैरकर तुम 

बह चलोगे।

समय की 

नदिया में 

बह कर

डूब कर फिर

तिर सकोगे।

दूर तक पीछा करेंगी

साथ मिलकर ही चलेंगी

वे घटाएं,

घुमड़ कर जो बरसतीं 

ले साथ में शीतल हवाएं।

सावनी यादों के साए,

घेर लेंगे,

फिर तुम्हे एक बार,

मेरे गीत में डूबे 

अगर तुम यार।

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