वह रूपसी थी।
भाव: जीवन में सुख और आनंद अलग अलग चीजें हैं, एक में हम अपने स्वार्थ के लिए संपत्ति संचय कर सुविधाओं में वृद्धि से सुख पाते है, दूसरे के लिए हम अपनी समृद्धि या सुविधाएं खुश हो कर दूसरों को निस्वार्थ देते हैं और उसका जो बायप्रोडक्ट होता है आनंद, स्वतः अभिप्रेरणा से हमें प्राप्त होता है। सुख दूसरे की सहायता लेकर मिलता है जबकि आनंद दूसरे की निस्वार्थ सेवा करके मिलता है। इसी पर कुछ लाइने..। समृद्धि क्या है? अंक है, माप है, सीमित सदा है, यह सांसारिक सुख से बढ़ कर कुछ भी नहीं है। परिमिति लिए, संग घूमती है, मृतप्राय है, कुछ ही दिनों की बात है। आनंद इससे दूर है, थोड़ा भी है तो अपरिमित है। आनंद! सोता*... प्रेम का है नित्य ही यह सरसता है। जितना उलीचो उपजता है। (सोता*... स्रोत) भाव: प्रकृति दर्शन आनंद का स्रोत है। इसके आगे हम स्वयं को विस्मृत कर समाधिस्थ हो जाते हैं। पहाड़, हरित-वनराजि, निरत प्रवहित जलश्रोत की शोभा, तुषार मंडित बर्फीली चोटिया अनुपमेय होती है। इसी पर कुछ लाइने आपके लिए। एक तलहटी थी, दूर तक फैली हुई, उन… पर्वतों के बीच में, ऊपर, शिखर पर.. हिम...