रंग हैं, उमंग हैं ये, जिंदगी के...।
भाव: जीवन एक अबूझी पहेली, सारे दर्शन पढ़ डाले, धर्मो को भी पढ़ा, अंतर्दृष्टि, अनुमान, तर्क सब एक संशय की दीवार मिली। एक से एक ऊंचे, ऊंचे आवाज में आपस में ललकारते, चिल्लाते अपनी ताल ठोकते, दावे! सब संशय, और अटकलों पर टिके हैं, आखिर, में सोचता हूँ जीवन को सुंदर, एक उपयोगी चादर सी खुद बुनु और बनाऊं ततः रख जाऊं जो शायद किसी के कुछ काम ही जाए। इसी पर कुछ लाइने आप के आनंद हेतु प्रेषित हैं।
सोचता हूँ... बनाऊं मैं
एक.., चादर... जिंदगी.. की,
सबसे... सुंदर
सबसे... सुंदर
आज तक... की।
भाव: सभी को अपना जीवन अनुकरणीय, सुंदर और बिना पछतावे वाला बनाना चाहिए।
इसलिए..,
मैं.. कर रहा हूँ,
इकठ्ठा, आज.. ही, से..
तंतु... सारे.., मर्म.. सारे..
तंतु... सारे.., मर्म.. सारे..
जिंदगी के, एक... संग।
भाव: इसके लिए हमे अपनी दृष्टि व्यापक और संवेदना का विस्तार करना होगा। जीवन तत्व, सद्ज्ञान, विद्या, स्नेह, प्रेम, क्षमा और करुणा आदि को जीवन में लाना होगा।
रख रहा हूं,
संजोकर, इन सभी को,
अपने, भीतर...
बड़े ही ताकीद.. से,
कि,
बुन सकूं,
सूंकूं... के पल...
साथ.. इनके,
और थोड़ी... चाहतें, इस जिंदगी में।
भाव: जब हम दूसरों के प्रति अच्छे से पेश आएंगे, और जीवन में सत्व को प्रश्रय देंगे तो परिणाम हमें अपने जीवन में सुकून, शांति, शुभ प्राप्तियां के रूप में स्वतः मिलेंगे।
मैं... चाहता हूँ,
हर एक रेशा.. शुरू में ही
परख... लूं, कसौटी पर..
हर एक रेशा.. शुरू में ही
परख... लूं, कसौटी पर..
त्रुटि.. कहीं.., अब.और. कोई
रह न जाए, इसलिए..
मैं, स्वाद...
इनका, चख...रहा हूं!
भाव: जीवन विभिन्न कर्म परिणामों और उनके अनुभवों का पिटारा है। इसमें अनेक लेसन या पाठ मिलते हैं उनपर सम्यक और संयमित दृष्टि रखना चाहिए तब ही हम जीवन को उपयोगी और अनुकरणीय बना पाएंगे।
और .. तब बुनूं...,
ये...चाहता हूं!
चादरे-यह-जिंदगी.., की
चादरे-यह-जिंदगी.., की
इनके संग।
बेफिक्र.. होकर, साज.. में
और तुझको... दे, सकूं..।
भाव: आप की स्वीकृति समाज में हो, इसके लिए आप का जीवन साज सा सुंदर, हर प्रकार बेहतरीन होना चाहिए।
जिससे कोई उसका अनुकरण आंख मूंद कर, कर सके।
लेकिन, ये... क्या है?
हर एक... रेशा!
लेकिन, ये... क्या है?
हर एक... रेशा!
बिल्कुल... अलग है!
अजब है,
रंग में, रूप में
एक.. दूसरे, से..
कुछ, बहुत... छोटे,
कुछ, बहुत... छोटे,
कुछ, बहुत... लंबे,
अतिशय भी कुछ हैं,
अतिशय भी कुछ हैं,
हर एक.. गुण में।
भाव: जीवन के अनुभव आपस में कंट्रास्ट भी हैं। एक जैसे नहीं, सब अलग अलग होते हैं। इस लिए इन अनुभवों को कपास के रेशों की तरह निराई करनी होगी। तब निष्कर्ष पर आना होगा।
मगर, प्रिय... हैं,
सुंदर... हैं ये....,
घनेरे... हैं, आह कैसे!
घनेरे... हैं, आह कैसे!
उजले कैसे।
देख.. तो,
मन... खींचते.. हैं
पर..."तात्क्षणिक" हैं,
पर..."तात्क्षणिक" हैं,
आयु.. से ये, हीन हैं।
इसलिए अनुपम हैं इतने।
भाव: जो चीजे बहुत जल्दी लाभ देती हों लुभावनी हों, आनंदक, सुखकर और तृष्णा बढ़ा देती हो उनकी आयु ज्यादा नहीं होती वे आपका चिर-साथ नहीं देंगी। अतः उनसे सावधान हो। इनका रूप रंग और आकर्षण आपको खींचेगा पर ये लंबे समय की साथी नहीं यह समझ लें।
जीवन.. नहीं हैं
कटि.. धार पर, लटके हुए
बस ऊपरी ये,
जिंदगी के, रंग हैं
धागे नहीं हैं, भ्रम हैं ये।
इसलिए ये त्याज्य ही हैं।
भाव: जो नकली रूप रंग और आकर्षण लिए आनंद कारी आदतें, वस्तुएं, जगहें हैं, वे क्षणिक है, धार पर केवल मछली का चारा हैं। इनसे सावधान हों, त्याग दे।
पर सच कहूं... मैं,
अगर तुमसे,
ये सुख ही हैं, मजे हैं,
ये सुख ही हैं, मजे हैं,
लुभावने हैं
रंग हैं, उमंग हैं
राग ही क्यों विलास भी हैं,
रंग हैं, उमंग हैं
राग ही क्यों विलास भी हैं,
जिंदगी के...।
भाव: जीवन की सच्चाई यही है कि लोग इन अस्थाई सुख और आनंद वाली चीजों में ही फंस जाते हैं। इसमें उन्हें जीवन का विलास दिखता है। यह दुर्भाग्य ही है।
बस! जीवन... हैं, ये
कुछ ही क्षणों.. के,
इस जिंदगी में,
रीढ़ की हड्डी नहीं हैं।
वास्तव में कुछ नहीं,
वास्तव में कुछ नहीं,
ये... जिंदगी के।
भाव: एक सार्थक और सम्पूर्ण जीवन की दृष्टि से सच कहूं तो.. ये क्षणिक आनंद और ये धोखे भरे सुख और तृष्णा पूर्ति जीवन के लिए अभिशाप हैं। इनसे जीवन निर्मित नहीं समाप्ति की ओर जाता है।
"ये...." जीवन नहीं हैं,
सातत्य... के, संप्राप्ति के
यश प्राप्ति के, गौरव भरे,
यश प्राप्ति के, गौरव भरे,
उल्लास के
सम्मान के, स्वास्थ के,
सम्मान के, स्वास्थ के,
कीर्ति के,
जग-मान्यता के, वीरता के,
जग-मान्यता के, वीरता के,
गर्व के,
ये तुच्छ हैं, मनुष्यता के धर्म के,
इस लिए चल छोड़ इनको
दूर कर तूं...
खुद... बीन इनको, अलग रख दे
इस जिंदगी की बाग से।
ये तुच्छ हैं, मनुष्यता के धर्म के,
इस लिए चल छोड़ इनको
दूर कर तूं...
खुद... बीन इनको, अलग रख दे
इस जिंदगी की बाग से।
भाव: जीवन के मार्ग में ये छद्म और क्षणिक सुख और तृष्णा पूर्ति के साधन सर्वथा त्याज्य हैं। इनसे आपको शांति, दीर्घ जीवन, उमंग, यश, सामाजिक स्वीकार्यता और आत्म सुख नहीं मिलेगा।
जय प्रकाश मिश्र
क्रमशः आगे।
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