स्विट्जर लैंड का मासूम सौंदर्य
पृष्ठ परिचय: कुछ जगहों पर नेचर नैसर्गिक सौंदर्य में विद्यमान रहती है स्विट्जरलैंड उनमें से एक है। आप इसी पर कुछ लाइने पढ़ें और आनंद लें। वहां के लोगों का और उनके परिवेश का एक हल्का सा चित्र आप के लिए शब्दों में प्रस्तुत है।
रसीले.. होठ हैं,
इनके, मधुर..,
हल्के…
गुलाबी..,
दूर हैं, हर..
प्रसाधन… से,
मूल रंगत में रंगे.. हैं,
रक्त के ही..संचरण… से,
मधुरिमा ले, खिल रहे हैं, पुष्प जैसे।
प्योर हैं,
झर.. रहे.. सौंदर्य हैं,
मुस्कुराहट.. से अटे.. हैं!
बहुत.. धीमे, हंस… रहे है
छुपाए हैं राज कोई! लग रहा बस!…
बोलने.. को, खोलने को राज,ये बेसब्र हैं।
नुकीली
है नाक.. सुतवां..
और पतली..नाली सरीखे
खिंच.. रही है, सुरीली... सी..
संगमर-मरी, मूर्तियाँ हैं, मोम की
कोमल, मुलायम, रस भरी सी
बोलतीं..हैं, डोलतीं..हैं,
समीर.. रस, बन
घोलती हैं..
शीतली
सच!
सुखद शीतल..
सूर्य के पहली प्रभा सी..
सुनहली…, बेदाग, उज्वल।
कंट्रास्ट!
कंट्रास्ट..कैसा गजब.. है,
सुरमई सा..
केशुओं.. का रंग.. है,
नीलमणि... हो चमकती..
कोंपलों
के बीच रखी
गहरे.. अंधेरों मध्य में..
हल्की हरी, पिस्ता सरीखी..
छाया.. लिए…
कुछ इस तरह के चमकते.. से नेत्र हैं।
लोग हैं,
बाज़ार खुद ही..
चलते फिरते इस तरह…
की रंगतों... में लोग.... हैं।
अदब के
आगोश.. में
भीगा… हुआ, ये शहर.. है,
सौंदर्य में तिरता… हुआ..
निराला.. ये नगर.. है।
शिल्प.. का आगाज है,
हर मोड.. पर
नायाब… हैं, हर बिल्डिंगे,
कारीगरी बेजोड़ है।
प्रगति का, सुरक्षा का,
सुव्यवस्था का,
सड़क का, पटरियों का,
आधुनिकतम बसों का,
ट्राम का, धरा… ऊपर,
धरा… नीचे
दौड़ती सी ट्रेन का…
जाल ही चहुंओर… है।
एक भी ना पोस्टर है,
एक भी ना ऐड.. है
एक भी ना शॉप है, शीशा लगी
जो… खुली हो, सामने हो..
सड़क पर.. सामान भर भर
बिक रही हो शून्य हैं।
क्लीन है हर एक कोना,
पत्तियां सब धुली हैं,
हरी है.. नव कोपलों सब
पुष्प.. कलियों.. से लदी.. हैं।
हर गली में पेड़ है,
हर गली में..फूल हैं,
खिड़कियों में,लटकते गुल
कह..
रहे हैं, दास्तां..
ऐ मुसाफिर! यहीं, कल भी..
प्यार.. में, तुम, चले आना फिर यहां।
दीवाल पर,
यह क्रीप करती बेलि बिच में
केलि करती,
मुस्कुराती, कह रही है,
यहीं आना, कल फिर मिलेंगे
प्यार में बिंध, खिल उठेंगे
साथ तेरे, मीत मेरे!
इसी जिंदगी में।
लोग,
कैसे देखते हैं…
एक दूसरे को…, कैसा बताऊं..?
दो बुझते दिए हों! नीचे… किए मुख,
देखते... हों, अपनी... छाया,
गुलाबी ले होठ अपने
मुस्कुराहट भी
भरी हो साथ में..
रसभरी.. सी फेंकते हैं..
प्रक्षेप... करते.. दृष्टि… से।
गर्दने ऊंची.. बहुत हैं, मजबूत... हैं
कपास के फाहे… सजाए
हों रखे…,
इस तरह… के
उजले… उजले… रूप हैं।
उजली.. उजली.. साफ सुंदर
मोमबत्ती..
जल..
रही हो, प्यार.. से
हवाओं में
हिल.. रही हो लहर ले..ले
लव भी उनकी, चमकती,
दुआओं की चाह में
किसी शांत से क्रिस्तान के
गिरिजाघरों में..
ठीक वैसे..
इस शहर की
बच्चियां.. हैं जा रही..
सड़क से, पैदल.. पथों पे।
अधिकतम के केश..
सीधे.. बने हैं, लगभग, खुले… है,
गुनगुनाते.., कहानी हों कोई कहते..
इस तरह.. से हिल.. रहे है।
झरते.. पत्ते, हल्के.. पीले
डाल से किसी गिर रहे हों
इस तरह के, कलर हैं।
आकृति ?
आकृति है!
थोड़ा लंबी, छरहरी
मिसरी..ढली, मिसरी मिली,
मोम सी, पारदर्शी, सूत में..
बिल्कुल नपी, भार में भी हो तुली।
कुछ इस तरह की लग रही है।
एक कोने.. देखता हूँ
कोई खड़ा.. है
बुत बना है,
पत्थर है क्या? यह इतना काला!
सोचता हूँ,
बिल्कुल तभी..
एक कोर उसकी चमकती.. है
कसौटी पे घिस.. गई है स्वर्ण.. रेखा
इस तरह वो दिख.. रही है
अफ्रीकन... है कोई,
बाल सारे बटे.. हैं, सटे हैं एक दूसरे से
रज्जुओं से, लटकते हैं।
साध है, मन में लिए
वह इस तरह से भटकती सी विचरती है।
जय प्रकाश मिश्र
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