यह ओंकार है क्या?
सृष्टि का उद्भव, स्थिति और लय ओंकार से शुरू हो....इसी में समाप्त भी होता है। यह आदि काल से वेद वर्णित रहस्य ध्वनि शाश्वत है। जो विश्व रंजन से निरंजन में समाती रहती है। इसी पर कुछ लाइने पढ़ें, यदि कही कोई त्रुटि हो तो उन त्रुटियों के लिए मैं पूर्व क्षमाप्रार्थी हूँ।
यह ”ॐ” क्या है?
स्वर… मात्र, संयोजित..कोई !
गुनगुनाता..,
भीतर से आता..
फैलता.. परिवेश में,
बाहर.. च भीतर…
समा.. जाता।
शक्ति.. का यह सार.. है!
क्या?
अद्भुत, अलौकिक!
क्या? परम उत्तम मंत्र है!
मैं सोचता हूं!
शब्द यह..!
ओंकार है क्या?
बस, नाद है,
किसी लहर.. के संहात का?
पुकार… है?
स्पंदित.. हृदय की भावना का!
बहती… हुई..
आ मिल गईं, संगम सरीखी…
सत्य कण की..धार का!
या वायु नद… की
उद्वेलना है, उर्ध्वता है,
मूलस्थान से
मणिबंध होते शिखर तक का।
रस अनुभूति है, यह
प्राण की!
निकलती प्राणी के मुख से..
ध्यान की।
ओंकार स्वर!
आखिर ये क्या हैं?
क्या ..ध्वनि हैं.. कोई!
उपोषना है!
कोई! नियोजित.. रचित,
विरचित,
मिट्टियों के अक्षरों की
प्यालियो में…
रख सुरक्षित धारना है..
बहती हुई यह…!
या बाल शिशु की किलकती
किलकारियों को समोकर
रसमयी में, पाग कर
बंदिशों.. में बांध कर,
ललितामयी
अधिकतम, प्रयास है यह!
या, यह !
अन्य कुछ है!
कोई गहराई परम हैं,
उत्फुल्लता के
उत्स की
जो फैलती, शिशु नेत्र सी,
आशीष लेकर, प्रेम की, हर तरफ ही।
निकलती, खिलती, है झरती
हर अंग से
जब मुदित हो कोई, मुस्कुराता होठ में,
इसे सोचना!
स्वर-मूल… क्या हैं
पार्श्व भूमि…, सत्य की है
या हिलोर बहती
तरंगों की
तट तक तुम्हारे, छू हिलकती
कान तक।
या सार का भी सार है यह!
सम्मिलित…. यह नाद है,
शक्तियों का संघ है
लिपट कर एक साथ ये
ओंकार है क्या?
इन सभी का।
लय है होता, जगत जिसमे
निकलता है, उछल करता…,
भीतर… कहीं से,
अन्तस दीवारों से, निरसता..
स्मृति झरोखों से गुजर.. के गूंजता
यह ओंकार है क्या?
जय प्रकाश मिश्र
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