महाशिवरात्रि की शुभकामना
शुभ शिवरात्रि (बावरो.. रावरो नाह.. भवानी)
प्रथम शुभ शिवरात्रि का वर्णन
एक समय था
जीवन नहीं था, इतना.. लंबा
इस धरा... पर, उस समय
वह, एक कोना मृत्यु.. का
हाथ.. में पकड़े हुए,
सृष्टि के उस छोर से
इस छोर तक
आवेग में भर,
नृत्य करतीं जा रही थीं।
जीवन तो... था, पर
बहुत छोटा,
स्वांस... भर बस,
हर.. किसी का
वह, देख.. इसकी,
इस प्रकृति.. को
मन ही मन पछता रही थीं।
सीमित, था जीवन..
तब, सभी का..
उर्मियों सा, क्षणिक था!
उछलते ही, शांत होता..
पलों.. में,
हां प्रतिपलों में,
रश्मियों... में, एक क्षण.. को
चमकता,
दूसरे.. क्षण,
अंधेरों में, शांत.. होता
मुक्त.. होता, मृत्यु... में, वह जा रहा था।
इतने भयानक दंश.. से
संयुज्य... थी
यह! सृष्टि...
इसलिए,
जीवन.. बढे,
एक स्वांस से, कुछ और आगे
सांस.. के संग, सिल.. सके,
और आगे, बढ़ सके..
मंथन... इसी पर
वह...
सतत... करती, जा रही थी।
पछता... रही थीं,
शक्ति वह..
बदलते.. निज रूप.. के
संभार.. को,
आदि से,
बस एक क्षण में,
मृत्यु पाता देखकर
मार्ग इसका ढूंढती,
वह आ रही थीं आदि से।
वह नियति थीं,
वह शक्ति थीं, वह.. पार्वती थीं,
आदि थीं, पर विवश थीं,
इसलिए चुप बैठ कर,
एकांत में,
मन ही मन इस ग्रंथि को
सुलझा रही थीं।
यह सृष्टि संचालन
उन्हीं.... का काम था;
यह चल.. सके,
यह भर.. सके,
आनंद.. से,
जीवन यहां पर, बस.. सके,
लोग थोड़ा और
जीवित. रह सकें..
कुछ देर को.. कुछ इस तरह,
जीवन सजे, जीवन रमे,
जीवन नहाए रंग में,
जीवन बहे..
पुष्प, कलियां, फूल-फल
इसमें लगें,
यह लक्ष्य उनका, बन रहा था
हृदय में।
मार्ग था, बस... तपस्या का..
कठिनता का, संयमों.. का
एक सच.. कहूं!
इस प्रकृति का संघर्ष था
वह... प्रेम में
उस परम शिव से..।
जीतना था,
संग उसका, जो शांत था,
संयमित था, मौन था
विरज था, जीवन भरे,
नस नाड़ियों में।
आदि... से
विरमित यहां था
युगों से,
जीवित यहां, आरम्भ से।
इस योग में ही
यथोच्छित जीवन छुपा था,
शिव-शक्ति के संयोग में
लय-ताल करता
मधुर, मंथर,
अनुराग मिश्रित
प्रेममय जीवन छुपा था।
कुछ इसलिए,
तपस्या... को चुना उन ने
चुभते हुए,
वन-रज्जुओं के
वस्त्र पहने, प्रथम उसने..
हताहत वह हो गई,
प्रखरता से, वस्त्र की इस
चुभन से,
रक्त की रक्तिम प्रभा, सच!
उतर आई
हर अंग उसके
उन रज्जुओं की छुअन से।
लालिमा थी दृष्टि में,
रतनार थीं, झील कोई दिव्य हो
गहरी, बहुत थीं..
विश्वास कैसा, जगमगाता
दीप सा
जल रहा था बीच में,
उन नेत्र में।
पर पुष्प सी मुरझा गई वह
कुछ ही दिन में
कालिमा ले देह सारी
शुष्कता में सन गई,
वायु के निष्ठुर सहज सानिध्य से।
छोड़ भोजन,
स्व-पतित, वह एक पत्ती,
नित्य खाकर
जी रही थी.. निजन वन में..।
छोड़ जल यह, सरस,
रस वह चांदनी का मात्र
पीकर, जी रही थी,
कठिन व्रत, उपवास, संयम कर रहीं थीं।
तनुष-अंगा, कृष्णवर्णा पार्वती
यह तपस्विनी, तब हो गईं थीं।
एक दिन,
इतनी अपरिमित, तपती तपस्या देख कर
शिव....., परम डोले,
बहुत धीमे, और धीमे..
नेत्र खोले।
परीक्षा लेने..
स्वयं प्रभु आ गए
पार्वती के नाथ जो थे
पार्वती के पास चलकर, आ गए।
पूछ बैठे..
बटुक ब्राह्मण वेश में
पूजती हो पार्वती,
किसको अरे तुम!
वंश जिसका है नहीं, घर नहीं,
आदर नहीं, संसार में,
घूमता है हो निरंकुश, शमशान में
वीरान में, हिम शिखर एकांत में।
उसको! अरे, तुम चाहती हो!
जीवन भरे, इस सृष्टि.. में
मिल संग तेरे..।
यह सृष्टि.. आगे चल सके
जीवन मिले।
कौन है शिव जानती हो!
शव ही है वो..., पहचानती... हो,
पूर्व से, जाने न कबसे..
सृष्टि में वह विचरता,
मुक्त है हर बंधनों से।
विरमित सदा, आनंद स्रष्टा,
भभूति में लिपटा हुआ
दिगम्बरा वह परम शिव है,
मान मेरी बात वह आडंबरा..है।
पार्वती सुनती रही, बैठी रही
अवधान करती..
परम शिव का...
ध्यान कर, बैठी रहीं,
अंत में बांधी नदी सी, टूटकर वह
बह चली..
तोड़कर तटबंध अपने,
साथ लेकर वर्जनाएं... बह चली,
वेग में, संवेग में वह
कह चली...,
एक सांस में..
भभूति में लिपटा हुआ उसे... जानते हो?
भूति... सारी,
होंगी.... उसी में,
पर नहीं... क्यों, मानते... हो?
कड़क कर!
चमचम चमकती दामिनी सी
जला... देगी ताप में,
तपस्या के तपस्विनी.. सी
मुड़ रही थी सामने से..देखती
उस छद्म रूपी ब्राह्मण को।
क्षण.. उसी
चरम हठ! यह देखकर!
उन पार्वती का
शिव.. अचानक हंस.. पड़े..
रंगे... हाथों पकड़े गए,
देख उनको, जान उनको, पहचान उनको
पार्वती.. बहती नदी हो बेग की
कुछ इस तरह, अचानक,
उस एक क्षण में यथास्थिति रुक गई,
यथावत कीलित हुई
जम गई, पत्थर हुई सी थी खड़ी..
कुछ इस तरह,
ठिठकती, चुप हो गई।
शिवपरम.... खुद... पकड़े गए थे
रंगे... हाथों, इसलिए
अब बात, कोई..
शेष, बाकी ना रही।
पार्वती कुछ इस तरह
देखते ही देखते
शिव की हुईं।
सृष्टि का संताप सब जाता रहा
उम्र लंबी हो गई, हर आदमी की
मधुर, मधुमय सभी जीवन हो गए
सृष्टि सुंदर, और शाश्वत हो गई।
क्रमशः आगे
जय प्रकाश मिश्र
भाव: परम पिता शिव व जगज्जननी मां पार्वती का यह मिलन महाशिवरात्रि को शुभ परिणय से संपन्न हुआ था। और जीवो को लंबा जीवन, आनंदमय, मधुमय जीवन मिला। सभी को शिवरात्रि की शुभकामनाएं।
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