जो प्रीत में डूबे रहे...वो सोए सारी रात!
रूपक 1: जीवन
सीढ़ियों में…. कई डंडे
लगा रखे थे, किसी ने
एक तल से
दूसरे पर,
सेफ चढ़ने के लिए।
तरीका
अच्छा बहुत था,
सोचता हूं आज, उसका
इतनी लंबी, जिंदगी के, रास्ते को
बांटने का, टुकड़ियों में।
जय प्रकाश मिश्र
रूपक 2: इच्छाएं
अब नहीं ख्वाइश.. है कोई
वह… मुस्कुराया...
कहते हुए,
मैं सोच में डूबा रहा!
कुछ देर तक,
फिर फुसफुसाया,
फिर से बता..
क्या कोई पूरी हुई है..!
एक ख्वाइश, आज तक।
आगे तो बढ़!
हिम्मत तो कर…!
अंत में… अच्छा लगेगा..
पर... मुंह को, जलने से.. बचा,
गुड......, तभी तो,
मीठा... लगेगा।
जय प्रकाश मिश्र
रूपक 3: विश्वास गरीबी में पले
तेरे कुनबे में रहता हूं,
यहीं की सांस लेता हूं,
नहीं हूँ दूर तुमसे मैं..
सपनों में, कभी भी मैं।
इसलिए
बहुत छोटा पयाम देता हूं।
सुनो, ऐ मन मेरे!
किसमें फंसा! आकर यहां तूं!
बेर के कांटे हैं ये!
छोटे बहुत हैं, देखने में,
पर मिल गए हैं,
यदि तुझे, पास से ये,
तो याद रख
अब तुझे, गिरने न देंगे।
नीचे जमीं पर,
और आगे,
इसलिए
नाराज हो मत, मुस्कुरा ले!
भाव: अगर आप भाग्य से या दुर्भाग्य से अपने से बहुत नीचे वाले पायदान पर गुजर बसर करने वालौं के रहमो करम पर आ जाएं या उनमें उनके साथ आपको रहना पड़ा, तो पक्का विश्वास रखिएगा वहां आपको अपनत्व और वास्तविक स्नेह प्रेम मिलेगा ही। वो आपको अपने में डुबा कर अपना बना लेंगे।
रूपक 4: मन रीता हुआ
मन रीता हुआ,
इस, दुनियां से आज
किससे कहूं ये बात!
जो प्रीत में डूबे रहे...
वो.. .. सोए सारी रात!
एक कबाड़ी आ के
सुबह सुबह बोला, तेज आवाज
एक बात.., बेंच... दो
पुराना हुआ, सारा... जंजाल।
मैं उसी से पैसा कमाऊंगा..
नई..
तुमसे अच्छी,
दुनियां बसाऊंगा।
सुन उसे, मैं शर्मिंदा हुआ
फिर से मन-प्रीता हुआ।
भाव: सबकुछ पा जाने पर भी मन कभी कभी दुनिया और इसके लोगों से परेशान होकर भागने का, सब छोड़ने का होता है। पर जहां लोग गरीबी में मुफलिसी में हैं वे प्रेम से जीवन जीते दिखाई देते हैं। सच है हम किसी से कितना परेशान हों पर जब बात अलग होने की आती है तो फिर जुड़ते ही हैं बहुत कुछ सोच कर।
जय प्रकाश मिश्र
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