ख्वाबों में पलते हैं मेरे, मेरे आंसू
पग एक: आंसू
इन बह रहे, मेरे आंसुओं को,
बांध देगा,
मजबूत…हाथों से वो, अपने
सोचता है!
कष्ट है! मैं क्या कहूं!
बता उसको...
ये, निकलते है आप… से,
पिघलता जब हृदय खुद, भीतर कहीं से।
अरे यह, रसहृदय हैं
पसीजते हैं,
गहरे.. अंधेरों में कहीं...
बहुत गहरी भावना की खान में..।
ला..गू नहीं कानून.. कोई!
बश नहीं, मेरा है इन पर!
प्रतिबंध कोई, ये नहीं हैं मानते।
छुपते.. नहीं हैं आंख.. में
मैं क्या करूं!
बस जानते हैं, निकलने का रास्ता..
एक ही, या झुर झुराकर
रूंध देंगे गले को।
बदल दो तुम नाम इनका!
चाहे जो रख रख लो!
ये खुद नहीं हैं, नाम अपना जानते।
छोड़ दो मेरे आंसुओं को
मुक्त कर दो,
बहने.... दो इन्हें
तुम, उम्र भर, सीजने दो प्यार में।
जय प्रकाश मिश्र
पग दो: आवरण हैं प्रेम के
ये आंसू, ये उदासी,
नीम के नीचे, छनती छायाओं बीच
बिहरती, विचरती ये चांदनी
मुस्कुराहट, कभी छुपती, कभी दिखती
आकाश में उस डूबते, निकलते चांद सी..
आती जाती झोंको सी,
चितवन उसकी,
आवरण हैं प्रेम का
जो मेरे भीतर पलता है।
उसने प्यार से पूछा, देखेगा उसे?
अरे! मैं सपने बुनती हूं
चुप चुप के, छुप छुप के
सलामती के, उसके...
भावी.. बच्चों के
जो अभी दुनियां में नहीं,
ख्वाबों में पलते हैं मेरे।
मेरे आंसू
पानी दिखते हैं तुझे..
लानत है तुझ पर
अरे ये,
प्रेम के हीरे, धुलते हैं, भीतर मेरे..
तभी तो निकलते हैं, धुंधले धुंधले
खारे हैं तेरे लिए।
मीठे हैं मेरे लिए।
जय प्रकाश मिश्र
पग तीन: प्रेम
पूछते हो प्रेम क्या है
अनुभूति के उन अंतरों में
कठिन कोमल बीच की उस भूमि में
जो रस सरसता,
उसी का अहसास है, प्रेम यह।
आत्म के भी,
स्वार्थ की अनुभूति का यह मर्म है।
एक होना प्रेम है,
मुक्त होकर बंधनों से
निर्बंध होकर प्रेम करना प्रेम है
अपनी परिधि में देखना
लहरता झंडा कोई,
किसी और का,
देख उसको खुश भी होना प्रेम है..
पा किसी से धन्य होना प्रेम है।
जय प्रकाश मिश्र
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