जीवन अनुभव विधि
नव जीवन अनुभव विधि
मानव अपने हर अंग में अपने को
नवकोपलों की तरह फ्रेश व
उल्लसित अनुभव कर सकता है।
वह एक साथ अपने को
शरीर के हर हिस्से में जैसे अस्थियों,
नर्व, सतह या सर्फेस पर,
कोशिकाओ, मन, चित व
चक्रो के स्थल पर अपनी
उपस्थिति महसूस कर सकता है।
1 सुखासन में बैठें
2 शांत हो
3. स्थिर सम स्वांस का अभ्यास करें।
3 जब स्वांस में स्थिरता व स्वाभाविक
समता पूर्ण लयता आ जाए तो
4. मानसिक प्रयास व आभास करें कि
आप की स्वांस पैर की अस्थियों ली जा रही है।
5. यही क्रम हाथ, सिर, चेस्ट, पेट की अस्थियों
व अन्यान्य अंगों में महसूस करे,
6. स्वांस व प्राण आपके जनन अंगों, व रीढ़ से
होकर बह रहे है।
7. शरीर के हर पोरों से प्राण छोटी छोटी लहरों
से खिल खिला रहे है।
8. इन प्राण तरंगों को ललाट, सिर के नीचे,
मष्तिष्क में, नस नाड़ियों, अंगों,
सभी चक्रों पर अनुभव करें।
9. अभ्यास का अंत नख सिख के बीच
कई बार इसका प्रभाव महसूस कर करें।
याद रखे कि पुष्प का प्रमुख कार्य पूर्ण धैर्य से ऐसा निरोग व स्वस्थ बीज बनाना है जो उससे बेहतर बन कर खिले।
इस तरह करते रहे।
जय प्रकाश मिश्र
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