एक फ़र्ज़ है. ..
एक... फ़र्ज़ है,
पूरा करना होगा,
बिना किए
रहा भी....नहीं जाता,
करूं.. क्या?
कहा... भी तो....
नहीं जाता।
लेकिन.. कहूंगा,
चुप ... न रहूंगा।
लिखूंगा.. बिना लिखे
रह न सकूंगा।
कुछ खास तो नहीं होगा... ,
ये जानता.. हूं,
पीछे वाले.. मुझे भी
सुना गए.. थे..
मैं... कहां मानता हूं।
पड़ा रहेगा, कुछ दिन
कहीं... कोने में,
धीमे.. धीमे...
कूड़ा मान..
विसर्जन होगा,
एक दिन, पक्का इसका।
चल.. कोई बात नहीं..
शायद, कभी
इस कागज पर चटनी रख
मूंगफली खाता..
बतियाता,
निराश, हारा
बेजार कोई, दुखी लड़का,
मेरे लिखे, कागज को
झटके में, यूं ही, पढ़ ले..
जी हां
बस मूंगफली... खाते, छिलते..।
और बदल ले..
अपना पुराना रस्ता,
जीत जाए, बदलने से
जिंदगी.. अपनी
सच्ची राह पकड़ ले...।
तब...
मैं जीत.... जाऊंगा
हां हां! हारते.. हारते...!
मैं.. जीत जाऊंगा,
उतनी... दूर, जाके.
आखिरी बार कूड़े...
में सडने से
पहले।
कूड़े की भी यात्रा करके..।
चलो...
यही सोचकर.. लिखता हूं,
एक बार फिर
अपना ग़म.. गलत करता हूं।
उस आखिरी, आदमी के लिए
कुछ लिखता हूं।
जय प्रकाश मिश्र
भाव: कर्म कोई जरूरी नहीं अनुरूप परिणाम दे ही लेकिन इसके लिए हम आगे ही न बढ़े यह ठीक नहीं। सफलता का कोई मार्ग अलग नहीं मात्र सतत परिश्रम ही ही।
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