डूब कर, जब रोशनाई में, कलम!

डूब कर, जब रोशनाई में, 

कलम! कोई कहीं...

कुछ अनकहा.. लिखने लगे।

भाव भीतर..भर उठें,

अनुभूति की लहरें हिलक कर!  

मन आंगना, बहने लगें।

तो... समझ लेना! 

एक... लहरा, 

शहद में भीगा... हुआ

अब बरसने को आ रहा! 

पास तेरे! 


मन आज उसका... 

स्मृति झरोखों ने निकल कर

जा मिला.. ..है,

बह रही उस मचलती ...

वर्षात की.... 

दरियायी.... 

नदी से, देख तो! 

खुले में वो आज कैसे फिर रहा है, 

झूमता बादल कोई हो।

जय प्रकाश मिश्र





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