विघ्नेश्वर धरती पर आए।

श्री शक्तियै नमः

पर्वत-राज... हिमालय पुत्री

जड़ को महिमान्वित करती,

धैर्य शक्ति को रसमय करती

जड़ के... अंतस से.. उपजीं।


भावमयी.. मैना की.. जाई

संगम.. जड़-जीवन करती,

पृथ्वी पर आरोहन.. करती

संकल्प शक्ति सबमें भरती।


मैना स्वर..,  पर्वत को भाया

मैना... पर्वत... घर ले आया

प्रेम स्नेह जब जड़.. में उपजा

पार्वती बन.... अंकुर निकला।


अटल तपस्या धैर्य... की सीमा

संकल्प शक्ति की जीती प्रतिमा,

गर्व पूर्ण.... जीवन है.. जिनका

शक्ति रूप... आनन है... उनका।


जड़-जीवन की बेटी ने 

कल्याण रूप, 

शिव को अपनाया,

सहज, अकामी, 

निरलस, पावन

ऐसे शिव को मां ने पाया।


पुत्र गणेश नर-पशु के संगम

पूरी प्रकृति.. रूप अवतरण,

हस्ती मुंड रूप.. पशुओं का

मानव.. धड़.. ऊपर बैठाया।


परम कल्याण.. रूप यह पावन

कुछ इस तरह भूमि.. पर आया।

नमन करो, सब नमन करो! 

विघ्नेश्वर धरती पर आया।

विघ्नेश्वर धरती पर आया।

जय प्रकाश मिश्र






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