कोई एक छाया मुस्कुराती आ मिली हमदम हुई।
प्रथम दर्श: इंद्र-धनुष
इक तीर लेना....
प्रेम.. का,
रख देर तक..
उसे साधना
उस धनुष पर तुम..
उग रहा जो मेघ में..
रंग सतरंगी लिए..
मुझे बेधने.. को
हृदय.. में।
प्रेम.. का,
रख देर तक..
उसे साधना
उस धनुष पर तुम..
उग रहा जो मेघ में..
रंग सतरंगी लिए..
मुझे बेधने.. को
हृदय.. में।
जल बूंद
जिसमे लटकती हों,
हर तरफ, आकाश में,
इस क्षितिज ऊपर,
श्रृंखला में
स्फटिक मणि या मोतियों सी।
खुद सूर्य जिसको बेधता हो
अपनी किरण से,
उनके हृदय को।
जिसमे लटकती हों,
हर तरफ, आकाश में,
इस क्षितिज ऊपर,
श्रृंखला में
स्फटिक मणि या मोतियों सी।
खुद सूर्य जिसको बेधता हो
अपनी किरण से,
उनके हृदय को।
अब जोहती हूं,
देखती हूं राह! तेरी
और बदली कब हुई थी?
पूछती हूं! तुम सभी से।
कब उगेगा धनुष वह!
जो इंद्र का है,
कब मुक्त हूंगी, तीर खा
उस धनुष का,
मैं इस जगत से।
देखती हूं राह! तेरी
और बदली कब हुई थी?
पूछती हूं! तुम सभी से।
कब उगेगा धनुष वह!
जो इंद्र का है,
कब मुक्त हूंगी, तीर खा
उस धनुष का,
मैं इस जगत से।
जय प्रकाश मिश्र
द्वितीय दर्श: नेता नव-ग्रह
नवों ग्रह
हैं, कहां टिकते!
सदा गतिमान रहते हैं;
यहां मन बुद्धि
सबकी डोलती, है
पात पीपल के सदृश मैं देखता हूं।
शीर्ष पर बैठे हुए...ये लोग
उनसे... कम कहां?
जिस भी घर में हो.. अच्छी जगह
उस ओर मुड़ते हैं।
ये ग्रह ही हैं, नव-ग्रह!
देख कैसी! टेढ़ी! चाल चलते हैं।
तृतीय दर्श: सजदा
हो खड़ा, सज़दे में... उनके
जब कहीं... सिर झुक गया,
कोई एक.. छाया मुस्कुराती,
आ... मिली,... हमदम..हुई।
मैं देख कर.. उसको
समझता जब तलक,
वह कौन थी....
वह शुक्रिया कह!
सड़क के उस पार
पैदल....खो.. गई।
भाव: ईश्वर को समर्पण और आस्था वाले लोगों को उसकी सहायता सदा सभी जगह किसी न किसी रूप में सामान्य या असामान्य रूप से मिल जाती है। हमारा उसके प्रति विश्वास अडिग होना चाहिए।
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