एक फिसलता सा खिलौना।
हो फिसलता...
सा खिलौना..
साथी... कोई...
ढूंढती हूं। 🦸
कुछ कम...
करे
जो बात..,
फिर भी..
रहे
हरदम साथ,
उसको... ढूंढती.... हूं। 🧙
सजा दे
सपनो की
दुनियां
प्यार में वो
रुला दे,
हाय... ऐसा ही खिलौना
एक... कोई... ढूंढती हूं। 🥰
मन मेरा...
हरदम..
टटोले..,
पर नहीं... कुछ
मुंह से.. बोले,
बाट...
उसकी जोहती... हूं।
एक फिसलता सा खिलौना
अपने लिए मैं ढूंढती हूं। 🤤
हो कोई भी... बात,
पर, छोड़े... न मेरा... साथ,
उसको... ढूंढती हूं।
उम्र के उस... पार..,
मेरा...
जब... शिथिल
हो.. गात,
तब..भी...
प्यार की... वर्षा करे
दिनरात,
उसको.... ढूंढती... हूं।
एक फिसलता सा खिलौना
ढूंढती हूं। 😁
लालिमा....
जब छोड़ जाए,
अंधेरे आंखों गिर्द.... छाएं...,
तब भी....रहे
बैठा मेरे जो पास ...
हो चुपचाप!
उसको.... ढूंढती... हूं।
एक फिसलता सा खिलौना ढूंढती हूं। 😚
जब सजल...
मेरे नयन हों...,
पास मेरे
दुख के.... क्षण हों...,
करता रहे, जो... बात,
उसको.... ढूंढती... हूं।
एक खिलौना ढूंढती हूं । 🤓
मैं खिलूं जब....
कली सी....,
उत्सव का... मन हो...,
सहज ही.... आए
मेरे....वह पास..
उसको ढूंढती हूं।
सुंदर खिलौना ढूंढती हूं। 😴
सांझ हो....
जीवन की मेरी....,
फिर भी
न छोड़ें.... हाथ...,
उसको.... ढूंढती.... हूं।
जब कभी
तन्हाइयों से....
मैं लडूं.....,
दुश्वारियों से....
जब भिडूं...सारे जहां से
तब भी.... न छोड़े साथ...
उसको..... ढूंढती.... हूं। 🥸
आज एक सच्चा खिलौना ढूंढती हूं।
बात
जब
कुछ... बिगड़ जाए....,
बात सारी...
मुझ पे आए...
तब भी.... करे
विश्वास...
उसको...... ढूंढती हूं....। 😍
अपने लिए एक पक्का खिलौना ढूंढती हूं।
Jai prakash mishra
पूछ बैठी एक दिन
एक तृषित पल्लव आम की,
ग्रीष्म की
उस, उमसती
तपती झुलसती
दुपहरी से,
कौन हो तुम
क्यों सताती
इस रसीले आम को
सूखी हवाओं संग
आकर हो जलाती
रोज ही तुम दोपहर को।
कुछ बोल तो।
जय प्रकाश मिश्र
क्रमशः
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