तंतु वीणा का, कोई है छू रहा।

वर्षा श्यामला

कौन है आया 

"वो"

घन की छांह में ?  ☁️

आर्द्रता में 

डूबता 

जग जा रहा है।    🌨️

ये फुदकती 

जल की बूंदे      💧

छू रहीं हैं 

तन मेरा।        🫂

कुछ आज ऐसे,

शीत की 

चादर पे 

"मन" 

मेरा 

बिछलता जा रहा है।  🌀


कब निकल आए, 

कली के पंख,     🥀

कब लताओं ने 

छुआ तन मन,

देख तो! 

किसलयी 

पत्तों से हिलते अंग     🌿

आह! शीतल हो के कैसे

आज मुझको छू रहे हैं।


मन मेरा 

रस धार पर 

इतरा रहा है।

पंखुरी शीतल,    🍀

धरा पर गिर रहीं हैं,

जलविंदु लेकर

मोतियों सी 

पत्तियों पर 

खिल रही हैं,

धवल बूंदें।   💦

देख तो!

तंतु वीना का 

कोई तो, छू रहा है।

पत्तियां हिलदुल 🌾

मचल कर गा रही है,

मोतियों सी 

बिखर जाती बूंद है।


चुपके चुपके,

नयना झुकाती 

पत्तियां,

सिहर कर 

जाने न क्या क्या

कह रही है।

बूंद की ठंडी छुअन से,

डालियां 

चुपचाप सब कुछ 

विकल मन से देखती हैं। 


जलबिंदु 

जब टप-टप टपकते, 

डालियों पर लिपटते हैं,

पेड़ का मन

झूमता है,

अधम नर सा।


क्या आ गयी

'वो' पूछता है।

श्यामला !

जलधार के संग 

आ गई है?

नभ पे सारे मेघ बनकर 

छा गई है?

हां, खिल उठी है

'मां' धरा अपनी पहन 

धानी चुनर एक बार फिर से

देख तो! 

आज आए आपने घर,

मेघ पाहुन 

श्यामला तनया भी संग हैं।


किलकतीं हैं 

बेटियां सब, 

खिलखिलाते लोग हैं,

आज उत्सव मन रहा है 

मुस्कुराते लोग हैं।

ले खडा है, 

पवन सुरभित, 

पुष्प की लड़ियां नवेली,

मेघ के स्वागत में 

खुश हो गा रही 

चिड़िया अकेली। 

ये "सबल भुजदंड" बादल के

तो देखो, 

पास कितने आ गए हैं।

ये सलोने मेघ भी लो 

इस धरा पर छा गए हैं।

बदलियां और बिजुरियां 

संग संग चपलता कर रही हैं

अद्भुत समा है आज देखो

कैसी ये रिमझिम पड़ रही है।

जय प्रकाश मिश्र







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