इंतजार के सीमांत की “धड़कन और आशा”

मैने सुना है अपने कानों, “सच”

नन्हीं बच्ची के पैरों में बंधी

पायल की धीमी झनक,

और चिड़िया की 

नन्ही बेटी की 

मीठी बोली 

की खनक, 

में अंतर

नहीं 

होता

कहने को,

दोनों स्वर ही हैं।

कानों के लिए, पर 

किसको ज्यादा तरजीह.... दूं ! 

सोचता रह जाता हूं, 

निर्णय नहीं कर पाता हूं।

पर महसूस करता हूं,

‘एक बात’, 

नन्हीं चिड़िया की

मीठी झुनक... में 

पुकार.... है, 

उसकी मां के लिए...

बार बार.. जो

मेरे कानो

में बज

उठती है। 

ध्यान से सुनता हूं उसे,

उसमे इंतजार के सीमांत की 

“धड़कन और आशा” घुली रहती है।

मां अब आ... जाओ, निरीहता ही

नहीं, घोंसले के अकेलेपन... से

उसकी ऊब, दिल से जुड़ 

बाहर निकलती है, 

वह चीं.. शब्द

दुनियां के 

शब्द कोष

का हिस्सा तो नहीं पर 

सबसे शक्तिशाली शब्द से कमतर 

भी नहीं, कितना कुछ.कह.वह 

नन्ही चिड़िया की बेटी..

बिना भाषा और

शब्द ज्ञान के

अनगढ़ स्वर

में बोल..

देती

है।

जब की

मेरी नन्ही पोती

के पैरों की पायल, चांदी 

के घुघूंरुओं से बनी.. जब बजती है,

केवल एक आनंद का झोंका बहा देती है।

मेरे अंदर तक, उससे ज्यादा कहने

की सामर्थ्य उसमे नहीं समाती।

उसके रुनझुन की सीमा है,

केवल और केवल आनंद।

चिड़िया की बेटी के

झुनक में दर्द.., 

इंतजार..,

आशा..

अकेलेपन से 

मुक्ति की पुकार.., 

खुशी.., चहक.., विश्वास..

क्या क्या घुला रहता है आखिर

यह सीधे जीवन की बोली है,

और वो, 'पायल'.

, निर्जीव

चांदी की छन छन

मुंह की नहीं 

पैरों के 

गति

से

निकली

मात्र एक झंकोली है।

फिर भी आज भी 

लोग धातुओं,

धनों, रत्नों के

पीछे, जीवन को छोड़

लोगो के सरोकारों से दूर;

उन चमकते, मंहगे, सोने चांदी को

पूजने को क्यों हैं मजबूर!

महत्व पूर्ण कौन क्यों है! जरा सोचो तो!

जय प्रकाश मिश्र





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