जिंदगी को एक धार पे बहने दो, बस इतना ही छुओ
दहलीज जिंदगी की, कुछ अर्ज कर रही
कहने की कोई चीज नहीं खुद निकल रही।
मुझे छोड़ दो, मेरे हाल पर,
बस इतना करो।
मैं खुश हूं, तेरे इंतजाम1 पर,
मुझे देखने दो।
सजदा2 करो, कहीं..., किसी और का...,
मुझे “बैठने तो” दो....।
गर तुम ये कर सको, तो करो,
कुछ.., मुझसे,
अलग.. करो।
मैं खुश हूं...,
अपनी जिंदगी से.. मिल के,
बस अब..., तुम,
न... मिलो।
बेचारगी3 के ये दिन
अजीज4 हैं ‘सच'
मेरे लिए "बहुत"।
तुम इतना ही करो अब...
की मुझसे
थोड़ा.. दूर ही रहो।
जो... तुम रह भी सको..,
अपने सपनों की
दुनियां में रहो..।
सपनो की यह
मखमली दुनिया तेरी है..
एहतराम-ए-आराम5
से रहो।
जीऊंगा कब तलक मैं, ये सोचता हूं,
आंख ही तो है, कभी खुले ना खुले।
उड़ जाएगी महक,
उस दिन;
सपनों के फूलों सी,
रह जाएंगी
बस कहीं एक याद
पुरानी धुंधली सी।
शायद बचें कहीं
सिमटते हुए
कसक6 में सने,
कुछ यादों के पल।
फिर भी गुजारिश7 है
कभी शर्मिंदा8!
न होना, न करना!
चाहे कैसा भी आए, तुम्हारा कल।
इसी लिए कहता हूं
“जिंदगी को एक धार9 पे बहने दो
उसे इतना ही छुओ ।”
गर पास आए ही तो
उतना ही पास जाओ
जितना इससे दूर रह सको।
थोड़ा दूर ही रहो।
जो धारा मे बह गए तो
किनारे खोजेंगे कुछ दूर,
तट राह खड़ा कब तलक
खोजेगा, होगा ही मजबूर।
कहानी उतनी लंबी नहीं
जितना तुम सोचते हो,
दीवारें मिट्टी की ही हैं,
गिरने में उतना वक्त
नहीं लगता;
जितना तुम सोचते हो।
जय प्रकाश मिश्र
शब्द भावार्थ: 1. की गई सुंदर व्यवस्था, 2. कुछ पाने के लिए नतमस्तक होना, 3. अपनी खस्ताहाल जिंदगी के दिन, 4. अति प्रिय, 5.सुख पूर्वक 6. दुख जो सालता रहेगा जीवन भर 7. प्रार्थना है। 8. धर्म, न्याय, मानवता के विरुद्ध कोई कार्य शर्मिंदा का कारण होता है ऐसा कुछ न करना। 9. जीवन एक प्रयोग है, आधान है आत्मा के साथ उसकी शुद्धता लेकर जिओ, धन संपत्ति इसका लक्ष्य नही, शांति, संयम में रहो।
दुनियां की सीख
मझधार की मस्ती से डर
तूं , किनारों पर रह,
डुबा लेंगी एक दिन साथ तुझे,
चलते चलते, चुपके चुपके।
कितने न जाने खो गए हैं
इस भंवर में आज तक
जाने न कितने घूमते
दिख रहे है
आज भी
मुझे, सामने बिखरे हुए।
जय प्रकाश मिश्र
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