ताज़ी हवा लगेगी, भूलेगी उम्र गिनती,

तुम रहना इसी दुनियां में,

कभी, कहीं, भी मिल जाना। 

जब बोझ लगे दुनियां, 

तुम मेरी गली आना।


ये दुनिया का खिलौना,

जब तुम्हे लगे बौना।

आंखों में आए पानी

गुनना मेरी कहानी।।


क्या क्या समेटोगे तुम,

जाने से अपने पहले।

कुछ याद छोड़ जाओ

दीवारें ...मत... कुरेदो।।

 

कुछ मेरी मान जाओ

रहने दो थोड़ी चीजें। 

खुद ही, ये सब, मिटेगा 

कुछ वक्त दो, उसे, तुम।

 

देगा सुकूं तुम्हें यह

जब जीत के ये दुनियां  

थक हार कर खुदी में

गुम होने तुम आओगे।


कभी लौट के फिर आना,

नजरें घुमाना इनमे

अहसास वही होगा

महसूस तुम कर लेना।


जो कुछ जहां हुआ हो,

सब अक्स है हो जाता। 

पाकर हमें अकेला 

चुपके से निकल आता।


हम फिर यहीं मिलेंगे 

यादों में जी उठेंगे,

रेंगेगी मुस्कुराहट, 

अरमान खिल उठेंगे।


ताज़ी हवा लगेगी, 

भूलेगी उम्र गिनती,

हम तुम में घुल मिलेगे, 

संग कोई भी हो हस्ती।

जय प्रकाश मिश्र


Comments

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता