फिर भी आंखों से आंख मिलाती आंखें
कहने..को तो
मे..रे मसाइल..
बहुत हैं,
करें गौर..तो
गाज़ा ए इजराइल..
बहुत हैं।
वो खाम.खा
तोहमतें… लिए
फिरते रहे,
देख ना
खुद के भीतर
कबा.इल बहुत हैं।
ये संघर्ष जो जीवनी शक्ति है, जीवन उससे मुक्त कभी नहीं रहा। मानव की फितरत है अशांति में जीना। आराम और समरसता से रहना आसान तो है पर हमारी प्रवृत्ति ही आसान को कठिन बनाकर फिर उसे जीत विजेता बन खुश होने की है। अपने भीतर के की दुविधाओं, और अनावश्यक इच्छाओं को जीतना ही सुखी जीवन का रास्ता है।
फे..र लो नजरें,
तो, न..हीं कुछ है,
दी..द, अस्ली हो
तो बहुत कुछ.. है।
ये दुनियां.. है,
व्यापार यहां होता है,
सौदा लोगों का
सामान संग होता है।
संवेदन शील, करुणावान के लिए दुनियां के दुख दुख हैं, कठोर हृदय के लिए कुछ नहीं। संसार की गति नृसंश है, लोग धूर्त, और रहस्य की गांठों से भरे हैं।
अपनों अपनो
की ही बात में
बंटी दुनियां,
देश, धरम,
जात के आधार
पे बंटी दुनियां।
खानपान
रीति नीति
में ही सिमटी
दुनियां,
सत्य,न्याय,
प्रेम, दया साथ में
बुनती दुनियां।
एक तरफ सर्वजनीन प्यार, सत्य, न्याय की बात लोग करते है और वो खुद अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वर्ग, जाति आदि में संगठित हो रहे हैं, यह विरोधाभास ही है।
छोटे छोटे
जज्बातों साथ
है बंटी दुनियां,
आदमी की जात
आदमी से ऊपर
है यहां,
मानवता.. नीचे दबी
मानव ऊपर है यहां
घुटता दम
ले के आखिर
कोई जाएं कहां।
आज मानव अपने निजी स्वार्थ के लिए मानवता को कुचलने पर लगा है। लोगो को समाज के हित से ऊपर जाति धर्म दिखता है। इस स्थिति में एक आम इंसान को क्या विकल्प बचा !
कसम
उस मालिक
खुदाबंद की,
फूल से
बच्चों की
रोती, बिलखती
आंखे.....,
चट्टान से उस
बेबस बाप की
बुझी बुझी
आंखें।
मां की
नेमत वाली
पर पथराई सूखी
आंखे....
है यह क्या क्या कुछ...
फिर भी
आंखों से
आंख मिलाती
आंखें।
भाव: ईश्वर हमारे कर्मों का साक्षी है, बच्चे, बूढ़े, रोगी, अपाहिज के प्रति जिम्मेदारी सबका कर्तव्य है। उस पर भी हम आधुनिक, सभ्य, विकसित मानव का दंभ भरते हैं। शर्मनाक है जब आज की वीभत्स दुनियां की हालत पे ध्यान देते हैं।
कृपया आप इन लाइनों पर अपनी कुछ कमेंट्स जरूर दें। मैं इंतजार करता हूं।
जय प्रकाश मिश्र
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