अपनों से ज्यादा, अपने में ही, खोने लगा हूं।

बाहर देखता, बस 

यूं ही चला था आज,

कुछ अन्मनस्क सा

पर चपल दृष्टि साथ।


फिरता 

अपनों, 

औरों 

और खुद के 

भीतर 

सच, मन को सम्हाले।


देखता हूं खिले फूल, 

झुकी पत्तियां, 

परिंदों के घरौंदे,

डूबता सूरज, 

भागती चिड़िया, 

फड़फड़ाते पंख 

कुछ आर्त आवाजें, 

कुछ परिंदे, आज की

आखिरी उड़ान के साथ।

बढ़ती हुई शीत लिए ये शाम।

धुंधलाता आकाश, 

धरती,आकाश में बढ़ती शांति।


कूदते बच्चे, 

बूढ़ों की निचुड़ती निगाहें, 

आकारों के किनारों को- 

छुपाती कालिमा, 

तम का बढ़ता राज,

खिसकता उजाले का डेरा, 

रुआंसी लड़की सा- 

मुंह लिए ये शाम।

भीतर बढ़ता अकेलापन, 

लौटी गौरैया की चिंचियाहट,

घने पेड़ों के हृदय,

बिना पत्तों की-

सूखती टहनियों वाले- 

ऊंचे पेड़ की चोटी,

अपने समय की उच्चतम- 

ऊंचाई से 

आकाश में चुनौती लेती।

उस निजन शाख पर 

बैठा अकेला 

सिकुड़ता 

एक पंछी, 

जीवन की सांझ में लड़ता 

हार से बहुत दूर।


आकाश भर में फैली, 

रजत लेपित, अंत:दीप्त 

विस्तृत चादर को 

तेजी से समेटते ये पल। 

मिटती..... 

रंगोरूप की जादूगरी।

सघन पल्लवों में- 

घोंसला बनाते स्याह अंधेरे।

और उन्हीं के साथ एक मैं! 

हर तरफ से खाली! 

कितने लिए 

खोखले खाने! 

रखने को 

बस यादें! 

उनमें। 

पीछे मुड़कर देखता हूं, 

वो भीड़ 

जिसका बोझ लिए 

भागा था। 

गुम है, 

नहीं! नहीं!

उनमें अंकुर 

निकल आए हैं, 

मुलायम पीले 

कुछ गुलाबी भी हैं।

सारी भीड़ 

अब अपने में 

व्यस्त है, 

भारी इतनी की

धरती से 

लगी जाती है, 

बार बार।

भूल गई मुझको।


मैं चुपचाप 

अपने झड़ते फलों वाले पेड़ सा 

या कहूं बरस चुके बादल सा

अब अंतर्मुखी होने लगा हूं, 

अपनों से ज्यादा अपने में ही 

सच खोने लगा हूं।

जय प्रकाश

भाव: आज शहरो में रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों का एक खाका खींचने की कोशिश है। जहां वह अपनो और दुनियां की भीड़ से लड़कर अब सुलझ गया है। रोज शाम को घर से अन्मनस्क ही निकल जाता है। कोई खास काम नहीं, बस भीतर एक उत्सुकता और अपनी अनुभवी दृष्टि लिए दुनियां देखता है। तटस्थ हो गया है अपने सरोकारों में, प्रकृति अच्छी लगती है। पेड़, च्छाया, शाम का धुंधलका, चिड़िया के पंख, और सारी चीजों को ध्यान से देखता है।

जिंदगी जिसके लिए शुरू की थी, वे सारे काम निपट चुके हैं। जो उस पर आश्रित थे अब अपने पैरो पर खड़े हो गए और अपनी अपनी दुनियां में बिजी हैं। अपने अकेलेपन के साथ बह झड़े फल वाले पेड़ या वर्षा से चुक गए बादलों सा स्वछंद घूमने को स्वतंत्र है। अब असली सुबह शाम अपने वास्तविक सच के साथ चलती है। जिंदगी में जिंदगी के पार की स्थिति आ रही है।



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