एक टिकोरा चाहिए, बस मन लगाने के लिए

क्षणिकाएं

1. 

इस झिलमिलाती 

चमक को 

तुम 

यूं....न देखो;

किस्से बंधे हैं, 

मोड़ के, 

हर झिल मिलों में। 


ढो रहे हैं, 

भार अपना, 

आज भी, 

वो

जो थे अंटके 

साथ इनके

जिंदगी में।


सच सुनोगे!

तो सुनो;

कुछ तो मिटे, 

कुछ मर मिटे, 

कुछ आज भी

तैयार बैठे.....

कुछ के केवल, 

दिल थे टूटे।


और जो 

बाकी बचे हैं, 

देखते हैं, 

आज भीं 

इन

झिलमिलाें को

तुम्हारे ही जैसे।

जय प्रकाश

दुनियां में भौतिकता का जादू जाने न कितनो को निगल गया, पागल बना दिया, आदमी के स्तर से नीचे गिरा दिया। पर आज भी उसी कूप में लोग गिर परेशान हो रहे हैं। इसलिए जीवन सादा और निश्चिंत जीना चाहिए।

2. क्षणिकाएं

मैने सुना था एक दिन,

कोई ये कहता जा रहा था।

"एक टिकोरा चाहिए 

बस मन लगाने के लिए।"


फिर भी 

देखता हूं ;

स्कल्स को चलते हुए!

नित भागते, बकते हुए

जिंदगी जीते हुए।

एक क्यों?

जाने न कितनी!

टूटीं हुई, 

उस खाट को 

उठते हुए!

अस्थि पंजर 

हिल गए हैं,

सांस, रुक रुक

चल रही है।


फिर भी

अरे! कैसी 

ये अपनी जिंदगी है

घाट पर भी चल रही है। 

हर जगह से रिस रही है।

जिंदगी ने हाय! कब है हार मानी?

इन मुरकती शिथिल होती हड्डियों से।

फिर भी "इक टिकोरा मांगती है

दिल लगाने के लिए।"

जय प्रकाश

भाव: आदमी को जीवन में उम्मीद की, सुंदर भविष्य की कोई चीज होनी चाहिए, उसी के सहारे वो अपनी जिंदगी जी लेता है। जैसे बूढ़े दादा दादी के लिए उसके पौत्र की उम्मीदें।आदमी के उम्र से उसका कल्पना लोक अप्रभावित रहता है। मन क्षणों में नन्हा  बालक बन जाता है। स्कल्स का अर्थ अत्यंत दुबले जिसके चेहरे की नसें और हड्डियां त्वचा के भीतर से झांक रही हो, टूटी खाट मतलब शरीर की अस्थियां कूल्हे, कोहनियां स्पष्ट दिख रही हों। ऐसे कमजोर लोगों को भी जिंदगी की जिजीविषा और जरूरतें अपनी भागा भागी से मुक्त नहीं करती। तिस पर भी परेशान और थकी जिंदगी भी कोमल भावनाओं में बहती ही रहती है।

3. क्षणिकाऐं 

सपनों को, बैठा, कर आगे, 

पीछे, दुनियां अपनी, लादे।

वर्तमान, चलता जाता, था 

दम...भर... पैडल... मारे मारे।

सोच रहा था, ताना बाना

क्षण क्षण रेशे चुन चुनकर,

सड़क भागती जाती पीछे

खेल करे... ज्यों कोई बुनकर।

जय प्रकाश

भाव: एक श्रमिक अपनी सायकिल पर आगे फ्रेम पर अपने भविष्य रूपी बच्चे को और पीछे अपनी दुनियां रूपी पत्नी को बैठाए अपने वर्तमान में साथ संतुष्ट जिदंगी की उधेड़बुन में डूबा सड़क पर संभावित खतरों से अनजान चुपचाप चला जा रहा था।

 वो खुद में सचमुच तल्लीन था।





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