गांव की गलियां तुम्हें लेकर चला मैं

 गांव की गलियां तुम्हें लेकर चला मैं।


मित्रों, एक गुजारिश है। अपने फोन से एक मैसेज आगे जुड़ने के लिए जरूर भेजें मेरे व्हाट्सएप पर और निम्न में से जो चाहे चुने।

1. अच्छा लगता है आगे भी भेजें

2. बंद करें।

3. सुधार करें

4. जरूरत नहीं है

जिससे मैं आगे अपना मार्ग चुन सकूं। आपका आभारी हूंगा।


गांव की गलियां तुम्हें लेकर चला मैं

अगर सुनो तो, 

तुम्हें सुनाऊं, 

एक कहानी गां…व की।

नीम निमौरी थी घर बाहर

बगिया थी एक आ…म की।


कौआ, तोता, कठफोड़वा सब

बैठे रहते डा…ल पर,

गैया, बछरु, बैल, भैंईसिया 

भोंकरा करते रा…त भर।


खटिया ऊपर बैठ बकरिया

जाने क्या बतियाती थी..,

सुग्गा, मैना, तोता, तीतर

गला फा..ड़ चिल्लाती. थीं।


चीतल एक रहा करती थी

पीपल की उस डाल पर।

नीचे नदी बहा करती थी,

कल कल करती रात भर।


खेत, मेड चहुंओर वहां थी, 

हरियाली घनघोर वहां थी, 

कुटिया एक गांव बाहर थी,

फुलवारी चंहुओर वहां थी।


पिंहक पिन्हक कर मोर मयूरी

झुलते झूला रात भर,

डाल डाल पर कुहुक कोइलिया

पिंहका करती रातभर।


सुबह सबेरे खुब भिनसेहरा।

जब सोतें सब लोग हैं शहरा,

गांव गली में चिड़ियां उड़कर

धूम मचाती थी उड़ उड़ कर।


तुम्हें सुनाऊं गांव की बातें,

थोड़ी थोड़ी काम की बातें।


चार बजे हम उठ जाते थे,

लालटेन संग जुट जाते थे।

पुस्तक धय मुड़वारी सोते

पानी से मुंह आं..खे धोते।


रट्टा मार मा.र के पढ़ते,

घू.म घूम कर याद थे करते,

जोर जोर की बोल बोलते 

मुल्ला की आवाजें… सुनते।


बड़े.. भो.र बजती थीं घंटी

प्रभु के मंदिर आरती होती..,

एक ओ..र बजता था घंटा

दूसरी ओर अजान थी लगती।


पंछी सारे चूं चूं करते,

आसमान में उड़ने लगते

प्राची दिशा गुलाबी लगती, 

तब मलयानिल हवा थी बहती।


गाय भैंइसिया चुंकर चुंकर कर

दूध निकालो मेरा तुम अब,

लेहना चोकर नादों भर भर 

बांधते थे तब खूंटा ऊपर।


खा पीकर जब तुष्ट हुईं वो

पंडिया, छौना छोड़ा करते,

पी पी कर जब मस्त हो जाता

फिर हम दूध निकाला करते।


अमृत सा पय कितना मीठा

छरका कोई मुंह में पड़ता

घच घचाय मुंह भर जाता था,

अमृत ही सच मिल जाता था।


सुबह सबेरे ले ले गगरा 

कुआं पर ही सारे बचवा

ठिठुर ठिठुर कर रोज नहाते

पूजा कर स्कूल थे जाते।


उबहनियां जब भीग थी जाती

सड़ सड़, सरक, हाथ से जाती,

सरदर एक, इनार ऊपर था,

बांस लकड़िया कै बनता था।


एक पैर, सरदर के… ऊपर

दूसरा जगत जमा के, दम भर,

तीन… बार में, कुआं ऊपर..

बिना लिए दम…, पानी भरते।


तोड़ टमाटर धनिया मिर्चा,

अपने पिछवारे कय ताजा

झटपटिया तरकरिया बनती

अरे मत पूछ!

बिना मसाला कैसी लगती।


दो दो रोटी खाय सबेरे,

झट पट पेट पूजा थे करते, 

कापीं पुस्तक बांध के बस्ता

झोरा लइ लई भागैं बच्चा।


साढ़े नौ लगती थी घंटी,

गांव तलक सुनाई थी पड़ती

सुनकर पांव थिरक जाते थे 

नंगेहि पांव दौड़ जाते थे।


पीछे से आवाज लगाती

दौड़ी दौड़ी माई आती,

खरमेटाव तूं लेहले जैहा,

हरवाहे के रस तूं पिहैया।


रस पियायके, लोटा बल्टी,

बांध जुआठा रसरी रसरी

अच्छे से लटकाय तूं दीहा

बिना छुआए ध्यान तूं दीहा।


जाबा, पगहा, नाधा, बरही

नाथी, बरहा, चरखी, ढेंकुली 

बोदर, हाथा, दांवरी अखनी 

उदहनियां दौरी दे दौरी।


सेर, दूसेरी, अंजुरी, मांगियां,

लेत देत बीती जिंदगनियां 

जेहि घर रहइ नई दुलहिनियां,

लइका फिरै मस्त दुपहरियां। 

क्रमशः आगे पढ़ें कल....

जय प्रकाश

आज का संवाद

है नहीं गर रंग गुलाबी साथ तेरे,

छांव में चुपचाप कोई घर बना ले।

ये प्रकृति है सदा खिलती, 

लाद देगी जल्द तुझको हर रंगों से।

जयप्रकाश




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मेरी, छोटी… सी, बेटी बड़ी हो गई.. जब वो.. पर्दे से

एक नदी थी ’सिंधु’ बहने सात थीं

वह सूरज है, अस्त होता है, मर्यादा से नीचे नहीं गिरता