रोक लेना, अपने आंसू, रो न देना।

आज के माहौल पर लिखी पोयम आपके नजर है। बृद्ध, अशक्त, पिता, मां जिनसे उनके बच्चे अन्यान्य कारणों से साथ नहीं हैं, उनकी आस और मानसिक स्थिति वर्णित है।

जिस जगह पर मैं. खड़ा हूं

वो.. जगह. तुमसे दूर… है।

तुम चांदनी. के पास… हो, 

मैं… मुश्किलों.. से दूर.. हूं।

भाव:  अपने बच्चों के इंतजार में, अब वे नहीं रहे। पर दो लाइन लिख गए हैं अपने बच्चे बच्ची के लिए “तुम अपनी आनंद निलयम दुनियां में रहो, मेरे लिए अब परेशान न होना। अब हम किसी तकलीफ में नहीं, संसार से ही मुक्त हैं।”

तूं, मांगता तो, 

आज भी होगा

 “वही”....

“जो”....,मांगता 

तेरे.. लिए मैं 

था कभी...।

तूं आज भी ‘अपनी समृद्धि, आनंद के लिए’  इतना बिजी है, मुझे समय नहीं दे पाया। पर मैं तेरे लिए सदा प्रभु से तेरी ही कुशल, कल्याण और समृद्धि, वही मांगा जो तूं अपने लिए चाहता है। 

नीचे अपनी भावना को अपने बच्चों को वृद्ध मां पिता बता रहें हैं। अपनी हेल्प की लिए अशक्त होने के कारण उनकी उन्ही उंगलियों की आज सहारा चाहते है जिनको पकड़ कभी उन्हें बहुत प्यार से घुमाते थे। अपने इलूजन ऑफ माइंड की स्थिति में उन उंगलियों की पोरों को अब वे छूते रहते हैं। उन्हें अब अशक्त हाथ पैर के कारण सहारा चाहिए।

अब भी…

खोजते हैं, हाथ मेरे 

पोर तेरी उंगलियों के, 

आज फिर वे 

आज फिर से,

चल नहीं सकता

हूं अब मैं,

पांव अपने

रास्तों पे।

पुनः याद करते है, पुरानी बातें जब उनका बच्चा छोटा था। कैसे कंधे पर बैठा कर बाहर, मेले में शौक से ले जाकर घुमाते थे और बच्चा उसके हाथ की उंगली पकड़ बैलेंसिंग कर खुश होता था।

ले तुम्हें सिर पर घुमाता

था कभी मैं।

हैं "यही" वे ही उंगलियां 

पकड़े हुए 

तूं संभलता, 

देखता था दूर तक

दुनियां नवेली 

प्यार से।

अपने जीवन की अंतिम पाली में एक सुनसान अकेले पन के साथ जीने को मजबूर मां पिता अपने लोगों के साथ की बेचैनी से प्रतीक्षा करते है उसके अभाव में मानसिक रुग्णता के शिकार हो जाते हैं। अपनी उंगलियों को देखते है सोचते हैं इन्ही को पकड़, सहारे से इसके बेटा बेटी कैसे चलना सीखे थे।

आज बैठा 

इस अंधेरे रूम में

मैं सोचता हूं। 

क्या कभी नन्हीं वो 

चिड़िया भूल कर भी 🦜

आ सकेगी खिड़कियों 

के पास मेरे।🌠

अपने बच्चों को मृत्यु पूर्व देखने की लालसा स्मृतियों में घुमड़ती है। अकेलेपन और शून्यतापूर्ण परिवेश में इलुजन की स्थिति में वो स्वप्नों में निमज्जित विभिन्न दर्शन को कल्पना में जीता है।

हां स्वप्न! पर मैं देखता हूं!🛀

साथ तेरे खेलता हूं।🎎

हाथ में झूला झुलाता रोज। 🪐

तुमको सोचता हूं।  🤦

एक दिन तेरी महक से,

घर मेरा भर जाएगा।  💒

अपने छोटे बच्चे के संग अनुभूत को स्वप्न मे पूरा करता है। कल्पनाओं मे झूलता है।

सब याद है मुझको कहानी,

मैं जिया, हूं साथ तुम सब।

कैसे कलियां 🌹

फूल बन कर 

महक से थीं  🥀

नेवतीं 

चहुं ओर सबको।

संग संगी का मधुर पा   💑

टूट कर उस डाल से

एक गुलदस्ता बनातीं,  💐

फिर उसी मे बंध वे जातीं।

पेड़ फिर चुपचाप 

क्यारी मे खड़ा है 

"जो" सोचता!⚡

मैं, सोचता "वह ही" 

खड़ा हूं आज!🌫️

पर अब आज 

लो मैं जा रहा हूं।🌊

पढ़ लिख लोग बड़े होते हैं। सक्षम होने पर संग में साथी आता है, घर और जिम्मेदारी, दायित्व उभरते है। जीवन बंधन बंध कर अपने मां पिता के लिए सोच कर भी सेवा नहीं करपाते। मां पिता अपने में सिमट जाते हैं। एक शून्य उन्हें घेर लेता है और वे डिप्रेशन में भी चले जाते हैं।सांत्वना के शब्द लिख कर विदा भी कभी कभी ले लेते हैं।

इसे पढ़ना, और खुश रहना।

जिस जगह पर मैं. खड़ा हूं🌈

वो.. जगह. तुमसे दूर… है।🌅

तुम चांदनी. के पास… हो, 🌋

मैं… मुश्किलों.. से दूर.. हूं।🌄

जय प्रकाश

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