सोच रहा हूं. मैं चुप बैठा, नदी बह गई
कैसी,
सच की मुस्कान
तिरती है यहां…
चेहरों पर,
देखो ना!
खुशी
झरनों सी
झरती है यहां,
मुखड़ों पर,
देखो ना!
चांदनी
कैसी रल
में बहती है, यहां
पल, प्रति पल
अधरों पर,
देखो ना!
मृग छौनों
सी
उन्मुक्त
कुलांचो भरी
चिल्हकन,
यहां देखो ना!
कैसी थिरकती,
है ये
दूधिया सी हंसी
होठों पर,
देखो ना!
कितनी
हो सकती है
निर्मलता, धरा पर
कुछ आंखों में
जरा,
देखो ना!
जीवन
कैसे
मचलता है
जहां में
इनसे
मिल देखो ना!
उंगलियों में
क्या
होता है जादू
अपनी एक
उंगली
इन हाथों में
पकड़ा
के देखो ना!
कैसा
होगा
विधाता,
सौम्य, सुषमा की
ये शकलें
तुम देखो ना!
भाव निहितार्थ: एक बालिका विद्यालय में कक्षा नर्सरी से कक्षा एक तक के बच्चियों को देखा तो उनकी नैसर्गिक दृष्ट अनुभूति आपको प्रेषित किए बिना नहीं रह पाया।
एक कहानी लेकर अपनी
एक कहानी
लेकर अपनी,
घूमा मैं धरती
द..र धरती...,
बैठ गया हूं...
आज मैं उलझा,
जीवन क्या है ?
नहीं मैं समझा !
भाव: अब काफी उम्र गुजरने पर भी काल नद में स्नान के बाद भी जीवन का मर्म रहस्य ही लगता है।
देख रहा हूं
घर के आगे,
भाग रहे सब
भागे...भागें..,
नहीं समय
कुछ सोच
सकें ये...
काले.. कुत्ते…
देख सकें ये।
(काला कुत्ता: काल को संबोधित भविष्य और अतीत, दुनिया की दौड़ भागम भाग अनवरत है। अविच्छिन् गति वाली है।)
मैं अपनी परछाईं लेकर….
घिरता जाता हूं पल, प्रति पल,
आज नहीं हैं अंखुए, कंनछे
जिनके लिए किए सब धंधे।
जिनके लिए जीवन भर लगे रहे सब, अपने रास्ते जीविका की तलास में निकल गए, फिर वही ढाक के तीन पात अपना निजी एकांत।
जीवन दौड़ बनी थी तब तक
जब तक सबकुछ था मेरे तक,
आज हुए जब कामयाब वो
भूल गए…. रिश्ते हजार वो।
स्वार्थी दुनियां सुनते थे, समय ने पटाक्षेप भी कर दिया। जब तक आप पर जिम्मेदारी रहती है, जीवन गतिमान रहता है। आप निर्णायण नायक की भूमिका में रहते हैं।
क्या क्या कठिनाई हम झेले
कैसे-कैसे, किसके-किसके..,
तब...थे हमने पापड़... बेले,
छूट गए हम सभी अकेले ।
जीवन परिश्रम से चलता है, और उम्मीदों से आगे बढ़ता है।
सोच रहा हूं. मैं चुप बैठा,
नदी बह गई. मैं घुप बैठा,
कितने सुंदर थे वे सपने
छोटे जब थे बच्चे अपने।
जय प्रकाश मिश्र
Poet begins poem from effect of truth. That are very beautiful. Poet is very possesive. In such world
ReplyDeleteAdmirable
Truth is not so sweet but also bitter .
सत्य अपने में निरा सत्य होता है। अच्छा और बुरा, मीठा या कड़ुआ हम पर हमारी स्थिति पर, हमारे दृष्टिकोण और पक्ष पर निर्भर करता है। संपूर्ण विश्व स्वयं में सत्य है पर अलग लोग अलग अलग सुख दुख पाते हैं।
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